भारत तथा चीन विवाद
पृष्ठ्भूमि
कल भारत तथा चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुआ जिसमे लगभग 20 जवान शहीद हो गए तथा काफी सारे जवान घायल हो गए। तीन घंटे चली यह झड़प दुनिया की दो एटमी ताकतों के बीच लद्दाख में 14 हजार फीट ऊंची गालवन वैली में हुई। उसी गालवन वैली में, जहां 1962 की जंग में 33 भारतीयों की जान गई थी। भारत ने चीन की तरफ हुई बातचीत इंटरसेप्ट की है। इसके मुताबिक, चीन के 43 सैनिक हताहत होने की खबर है, लेकिन चीन ने यह कबूला नहीं है।
क्या था मामला ?
भारत और चीन के बीच तनाव तब शुरू हुआ था, जब पांच मई को दोनों देशों के सैनिक पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग क्षेत्र में आपस में भिड़ गए थे। पांच मई की शाम को चीन और भारत के 250 सैनिकों के बीच हुई यह हिंसा अगले दिन भी जारी रही थी। इसके बाद नौ मई को उत्तर सिक्किम सेक्टर में भी इस तरह की घटना हुई थी। भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी को लेकर है। इसके बाद दोनों सेनाओं ने बातचीत के जरिए से सीमा विवाद हल करने की कोशिश की थी।
अंतिम बार इस तरह की झड़प कब हुई थी ?
भारत-चीन सीमा विवाद के पीछे की तीन बड़ी वजह
1- जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना
पंत कहते हैं कि सबसे बड़ी वजह, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना है। इससे चीन पूरी तरह से तिलमिलाया हुआ है, इसीलिए वह इस मुद्दे को यूएन सिक्युरिटी काउंसिल में भी ले गया था। चीन को लगता है कि यदि भारत का कंट्रोल कश्मीर और लद्दाख में बढ़ेगा तो उसके कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में दिक्कतें आएंगी।
खासकर, पाकिस्तान के साथ बन रहे स्पेशल इकोनॉमिक कॉरिडोर पर, जो पीओके से होकर गुजर रहा है। इसीलिए, चीन कश्मीर और लद्दाख में भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग पर आपत्ति जता रहा है। भारत ने जब से दौलत बेग ओल्डी में सड़क बनाई है, तब से चीन ज्यादा ही खफा है।
2- कोरोना को लेकर दुनिया का प्रेशर
चीन के ऊपर कोरोनावायरस को लेकर दुनिया का बहुत प्रेशर है। इसलिए उसे लगता है कि भारत ऐसा देश है, जिसे वह रेडलाइन दिखा सकता है। उसे धमका सकता है, दुनिया का अटेंशन कोरोना से हटाकर सीमा विवाद पर डाल सकता है। वह भारत को अगाह भी करना चाहता है कि आपकी लिमिट है। भारत के पास कोई मुद्ददा भी नहीं है, जिसके जरिए वह चीन पर दबाव डाल सके। अभी सारे प्रेशर प्वाइंट चीन के पास हैं।
3- भारत की विदेश और आर्थिक नीतियां
भारत की जो विदेश नीति रही है, उससे भी चीन को परेशानी हुई है। चाहे वह WTO का मामला हो, चाहे कोरोनावायरस को लेकर हो रही जांच की बात हो। इन मुद्दों पर भारत ने चीन के विरोध में अपनी सहमति दी है। या फिर चाहे, भारत का पश्चिम देशों के साथ जाना हो।
भारत ने पिछले महीनों में कड़े आर्थिक कदम भी उठाए हैं। भारत ने चीन के साथ एफडीआई को कम कर दिया, पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट में रिस्ट्रक्शन ले आया है। चीन की कंपनियों पर सरकार कड़ी नजर रख रही है। प्रधानमंत्री मोदी आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं। इन बातों से भी चीन को लग रहा है कि भारत उससे आर्थिक निर्भरता को कम करना चाह रहा है।
आगे की राह
चीन का खास अंदाज़ ये है कि वो दो कदम आगे बढ़ाता है और फिर एक कदम पीछे हटाने पर मान जाता है और इस तरह आख़िर में एक कदम हासिल कर लेता है. गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगॉन्ग त्सो, तीन मुख्य क्षेत्र हैं, जो अभी भी विवादास्पद हैं.
अतः सरकार को एक राजनीतिक रुख अपनाना होगा और मुद्दे को हल्के में लेना बंद करना होगा. इस रुख की बुनियाद इस भरोसे पर टिकी होनी चाहिए कि भारतीय सेना कमज़ोर नहीं है और मामले को तूल देने में वो चीनियों का मुकाबला कर सकती है. लेकिन इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी आवश्यक है. चीन एक बुली है और अगर बड़े वैश्विक संदर्भ में देखें, तो भारत को अपने जोखिम का हिसाब, तुलनात्मक शक्ति पर आधारित करना चाहिए और उनकी ताकत के झांसे में नहीं आना चाहिए. चीन के पास अपनी ही बहुत परेशानियां हैं और भारत के अंदर इतनी क्षमता है कि वो चीन की प्रमुख समस्याओं- ताइवान और साउथ चाइना सी को लेकर, उसकी क्षमता को कमज़ोर कर सकता है. यहां पर मुख्य बात ये है कि प्लेबुक एक दिमाग़ी खेल है.
सैन्य और राजनीतिक दोनों रास्ते हैं जिनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए. लेकिन उससे पहले, भारत को ‘इसे हल्का करने के’ अपने रुख में बदलाव करना होगा और ये संदेश देना होगा कि उसे ऐसा रणनीतिक व्यवहार मंज़ूर नहीं है और आपसी रिश्तों पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है. कूटनीतिक तंत्रों के माध्यम से चीन तक संदेश पहुंचाए जाने चाहिए कि अपने घरेलू राजनीतिक डाइनामिक्स को देखते हुए, भारतीय नेतृत्व ऐसी शर्तों पर समझौते के लिए तैयार हो सकता है, जो जीत या हार न दिखाएं, लेकिन क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति के बड़े खेल में, वो चीन को नाराज़ करने के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है.
बहुत समय हो गया कि अब एक स्टैंड लिया जाए. जोखिम चाहे कुछ भी हों, सैन्य, राजनीतिक या आर्थिक, चीनियों के दिमाग में कोई शक नहीं रहना चाहिए कि उत्तरी सीमाओं पर अपनी रणनीतिक सैन्य बढ़त का इस्तेमाल करने से, वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर भारत का राजनीतिक रुख प्रभावित नहीं होगा. चीन को मानसिक रूप से स्वीकार करना होगा कि भारत कभी किसी खेमे में नहीं रहेगा लेकिन संदर्भ और दांव पर लगे मुद्दों को देखते हुए, वो उन्हीं देशों के खेमे में बैठेगा, जिनके साथ उसके साझा हित होंगे. भारत का खेल यही होना चाहिए.
स्रोत - भास्कर डॉट कॉम, द प्रिंट, लाइव हिंदुस्तान
Comments
Post a Comment