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आत्महत्या

आत्महत्या 

आत्महत्या

हाल ही में सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली.इस खबर ने शीघ्र ही प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया में भी अपनी जगह बना ली. सुशांत सिंह राजपूत एक प्रसिद्ध युवा अभिनेता थे तथा इन्होने बिना किसी फ़िल्मी पृष्ठ्भूमि के बॉलीवुड में अपने प्रतिभा तथा संघर्ष के द्वारा अपनी एक जगह बनाई थी.वे बहुत सारे युवाओं के रोल मॉडल थे। 
उनके इस तरह की आत्महत्या ने भारत में बढ़ते आत्महत्या की घटनाओं को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।  

आंकड़े क्या कहते हैं ?

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2000 से 2015 के 
आत्महत्या से होने वाली मौतों में भारत का आनुपातिक योगदान बढ़ता जा रहा है. यहां का आंकड़ा महामारी की शक्ल अख्तियार किए हुए है. राष्ट्रीय स्तर पर हुए सैंपल सर्वे में ये बात सामने आई है, जिसको अंतिम रूप से 31 मार्च 2018 को तय की गई कमेटी में रखा गया. अनुमान लगाया गया कि आत्महत्या की दर में 95 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है.
15-29 वर्ष की आयु में होने वाली आत्महत्याओं का औसत, देश की कुल आत्महत्याओं के औसत से तीन गुना अधिक है। इसके कारण पूरे विश्व की तुलना में भारत के युवाओं में आत्महत्या के सबसे अधिक मामले मिलते हैं।

शिक्षित और सम्पन्न लोगों में आत्महत्या के अधिक मामले देखने में आते हैं।

जापान जैसे सम्पन्न देश में प्रति लाख व्यक्तियों पर होने वाली 20 आत्महत्याओं की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद स्विटज़रलैण्ड का नंबर आता है। भारत में यह प्रति लाख व्यक्तियों पर 11 है।दक्षिण भारत में धनी व सम्पन्न राज्यों में आत्महत्याओं की संख्या, उत्तर भारत के गरीब राज्यों की तुलना में 10 गुना अधिक है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 के मुकाबले 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर खुदकुशी की दर में कमी आई है. वर्ष 2015 में प्रति एक लाख आबादी पर आत्महत्या की दर 10.6 थी जो 2016 में घटकर 10.3 प्रति एक लाख आबादी पर आ गई है. हालांकि, राष्ट्रीय दर 10.3 के मुकाबले 2016 में शहरों में खुदकुशी की दर 13.0 दर्ज की गई.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया-2018’ और 'एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड रिपोर्ट' जारी हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में 10,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की जो पिछले 10 सालों में सबसे अधिक है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनियाभर में हर साल करीब 8 लाख लोग खुदकुशी करते हैं। इस हिसाब से हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान देता है.विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार  निम्न मध्यम आय वाले देशों में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है।

इसी तरह एनसीआरबी के रिपोर्ट के अनुसार 2016 में 11,379 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या कर ली।

इस तरह भारत का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो आत्महत्या नहीं कर रहा है।

क्यों कर रहे है आत्महत्या ?

भारत के प्रत्येक वर्गों में आत्महत्या के विभिन्न कारण है। यथा -छात्रों में बढ़ते आत्महत्या का कारण परीक्षाओ को लेकर बढ़ता तनाव ,करियर तथा विषयो के चयन को लेकर पालकों का बढ़ता दबाव ,परीक्षाओ में प्राप्त प्राप्तांक को लेकर आस -पड़ोस के लोगो की प्रतिक्रिया ,करियर के सीमित विकल्प ,उच्च शिक्षा संस्थाओ में कटऑफ का बढ़ता ट्रेंड आदि कारण है।  
युवाओं में बढ़ते आत्महत्या का प्रमुख कारण करियर को लेकर तनाव ,अधिक धन तथा नाम कमाने की चाह ,सोशल मीडिया में बढ़ती संलिप्तता ,अकेलापन ,बेरोजगारी ,योग्यता के अनुकूल काम न मिलना ,वीडियो गेम का प्रभाव आदि। 
इसी तरह महिलाओं में आत्महत्या का बड़ा कारण लिंगभेद ,दहेज़ की मांग ,पारिवारिक कलह ,घरेलू हिंसा ,सोशल मीडिया ,अकेलापन आदि है। 
किसानो में आत्महत्या का कारण कॉमर्सिअल खेती का बढ़ता ट्रैड ,उत्पादों का सही दाम न मिल पाना ,खेती की बढ़ती लागत ,कर्ज आदि कारण है। 

कैसे रोक सकते है आत्महत्या को ?

आत्महत्या को रोकने की जिम्मेदारी स्वयं के साथ-साथ समाज तथा सरकार की जिम्मेदारी है। 
सबसे पहले तो आपको ये समझना होगा की आपका जीवन अत्यंत अनमोल है। आपका जीवन सिर्फ आपका नहीं है अपितु आपके साथ और भी कई लोगो की खुशियाँ जुडी हुई है। दुनिया में ऐसे कितने वाकये है जिसमे कई लोगो ने बिल्कुल बर्बाद होने के बाद फिर से अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कारवा लिया।
इसमें सबसे प्रमुख नाम अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का है। अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बनने से पहले कई बार कई चुनावो में हार चुके थे। यहाँ तक उनका वैवाहिक जीवन भी अच्छा नहीं था. इन सब समस्यों के बावजूद वे अमरीका के राष्ट्रपति बने तथा उन्होंने सिविल वॉर के समय अमेरिकी संघ का नेतृत्व किया तथा इस सिविल वॉर में जीत दर्ज कर वर्तमान शक्तिशाली अमेरिका के लिए नीव तैयार की एवं दास प्रथा का अंत किया। 
इसी तरह थॉमस अल्वा एडिसन ने अपने जीवन में लगभग 1903 आविष्कार किए जिसमें सबसे याद रखा जाने वाला उनका आविष्कार विद्युत से जलने वाला बल्ब है।
उन्होंने ऐसे ही सब आविष्कार नहीं कर लिए अपितु इतने सारे आविष्कार अत्यंत कष्ट सहकर कठोर परिश्रम से किया ।वे रेल के डिब्बों में सब्जी बेचते थे तथा वही पर उन्होंने अपना छोटा सा चलता फिरता प्रयोगशाला भी बनाया था ।एक बार प्रयोग के दौरान जब डिब्बे में आग लग गई तब उन्हें अपना यह कार्य छोड़ना पड़ गया।इसके बावजूद उन्होंने आविष्कार करना नहीं छोड़ा और निरंतर अपने आविष्कारों में लगे रहे और अपनी मृत्यु तक उन्होंने इतने सारे आविष्कार कर लिए ।
इसी तरह गांधी जी को उच्च शिक्षा के बावजूद दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का शिकार होना पड़ा तथा उन्हें ट्रेन के डिब्बे से समान के साथ इसी वजह से बाहर फेक दिया गया फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी तथा दक्षिण अफ्रीका में इसका विरोध किया तथा वहां से मिली सीख का प्रयोग भारत की आजादी की लड़ाई में किया एवं भारत को अंग्रेजो कि गुलामी से आजाद कराया।
इस सूची में एक और प्रमुख नाम एंड्रयू कार्नेगी का है जिन्होंने अपनी लगभग 90% पूंजी को अमेरिका में एजुकेशन तथा रिसर्च के लिए दान कर दिया ।इन्हे अमेरिका का स्टील किंग भी कहा जाता था।
इन्होंने भी इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ा संघर्ष किया था।इनका जन्म अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था बावजूद इसके उन्होंने यह मुकाम प्राप्त किया।
यह सब जीवन चरित्र हमे प्रेरणा प्रदान करती है कि किस तरह लोग जीवन में  परेशानियों के बावजूद सफलता प्राप्त करते है । इसलिए जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
आत्महत्या को रोकने की दूसरी जिम्मेदारी समाज की है। व्यक्ति को कभी भी उसके सफलता तथा असफलता के आधार पर परखना नहीं चाहिए अपितु इस कसौटी पर परखना चाहिए की वह इंसान के तौर पर कितना अच्छा है तथा वह समाज के लिए क्या योगदान कर रहा है।
लेकिन समस्या यह है की आजकल समाज व्यक्ति को उसके धन सम्पदा तथा उसके पद, सफलता आदि के आधार पर पहचानता है और अधिकांश व्यक्ति जो यह सब नहीं कर पाता वह अवसाद का शिकार हो जाता है तथा आत्महत्या जैसे कदम उठा लेता है।
समाज को यह भी समझना होगा कि मानसिक विकार का मतलब सिर्फ पागलपन नहीं होता तथा मानसिक विकार से ग्रसित लोगों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए अपितु उसे सहयोग तथा सहायता प्रदान करना चाहिए।
सरकार को भी मानसिक रोगों के उपचार के लिए जिला तथा सामुदायिक अस्पतालों में डॉक्टरों की नियुक्ति करनी चाहिए तथा लोगों के बीच मानसिक विकार से संबंधित रोगों से संबंधित भ्रम को समाप्त करने के लिए नीतियों के निर्माण के साथ इसका प्रचार प्रसार करने का प्रयास करना चाहिए। सरकार को ऐसी नीतियों का निर्माण करना चाहिए जिसकी वजह से अधिक से अधिक रोजगार उत्पन्न हो तथा लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य प्राप्त हो सके, किसानों को उनकी फसल का सही दाम प्राप्त हो तथा खेती के लागत को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए। 
विश्वस्तरीय  शिक्षा प्रदान करने वाले उच्च शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए तथा शिक्षा में जीवन मूल्यों का समावेश किया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष

इस तरह यदि व्यक्ति,समाज तथा सरकार आत्महत्या के कारणों को दूर करने का प्रयास करेगी तो निस्संदेह इस मानसिक विकार पर विजय प्राप्त की जा सकती है। 






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