रूस के साइबेरिया में पॉवर प्लांट से 20 हजार टन डीजल का नदी में रिसाव
source -नवभारत टाइम्स
रूस के साइबेरिया में एक पॉवर प्लांट से 20 हजार टन डीजल के रिसाव के बाद नजदीक से बहने वाली नदी का रंग सफेद से लाल हो गया है। जिस प्लांट से तेल का रिसाव हुआ है वह साइबेरिया के नोर्लिस्क शहर में स्थित है।
पॉवर प्लांट से डीजल बहकर अंबरनाया नदी में मिल गया है। जिससे इस नदी का रंग बदल गया है। रूसी विशेषज्ञ इस नदी को साफ करने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास कर रह हैं। वहीं कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने दावा किया है कि इस नदी को साफ करने की लागत 1.16 बिलियन यूरो तक पहुंच सकती है। ऐसी आशंका है कि प्रदूषण ग्रेट आर्कटिक स्टेट नेचर रिजर्व में फैल सकता है। बता दें कि इस रिजर्व में प्रदूषण के पहुंचने से जलीय जीवन को भारी नुकसान हो सकता है।
कंपनी नोर्लिस्क निकिल ने कहा है कि डीजल का रिसाव होने के बारे में समय से और सही ढंग से जानकारी दे दी गई थी। फ्यूल टैंक और पावर प्लांट में लगे एक पिलर के धंसने से तेल रिसना शुरू हुआ। यह प्लांट पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी पर बना है। मौसम गर्म होने के साथ यह पिघलने लगती है। यही वजह है कि प्लांट में लगा पिलर धंसने लगा। पर्माफ्रॉस्ट उस जमीन को कहते हैं, जो कम से कम दो साल से जीरो डिग्री सेल्सिसय तापमान पर हो।
पर्माफ़्रोस्ट
पर्माफ़्रोस्ट (permafrost) ऐसी धरती को बोलते हैं जिसमें मिट्टी लगातार कम-से-कम दो वर्षों तक पानी जमने के तापमान (यानि शुन्य सेंटीग्रेड) से कम तापमान पर रही हो। इस प्रकार की धरती में मौजूद पानी अक्सर मिटटी के साथ मिलकर उसे इतनी सख़्ती से जमा देता है कि मिटटी भी सीमेंट या पत्थर जैसी कठोर हो जाती है। पर्माफ़्रोस्ट वाले स्थान अधिकतर पृथ्वी के ध्रुवों के पास ही होते हैं (जैसे कि साइबेरिया, ग्रीनलैंड व अलास्का), हालांकि कुछ ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों (जैसे कि तिब्बत व लद्दाख़) में भी जहाँ-तहाँ पर्माफ़्रोस्ट मिलता है। पर्माफ़्रोस्ट में खुदाई करना पत्थर तोड़ने की तरह होता है और इसके लिए अक्सर भारी औज़ारों की ज़रुरत होती है।
आर्कटिक सर्किल और उत्तरी जंगलों के बीच एक बड़ी पट्टी पर्माफ्रॉस्ट वाली है जो अलास्का, कनाडा, उत्तरी यूरोप और रूस के इलाकों तक फैली है. दक्षिणी गोलार्ध में पर्माफ्रॉस्ट कम पाई जाती है क्योंकि वहां जमने वाली ज्यादा जमीन नही हैं.
पर्माफ़्रोस्ट तथा जलवायु परिवर्तन
एक नए अध्ययन में कहा गया कि बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक में बर्फ के नीचे की मिट्टी पिघलने लगी हैं, जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहा जाता है. इससे आर्कटिक क्षेत्र का 70 प्रतिशत बुनियादी ढांचा खतरे में है, जिसमें तेल और प्राकृतिक गैस के कुछ प्रमुख क्षेत्र भी शामिल हैं. रिसर्चरों ने उत्तरी गोलार्ध के पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र का विस्तृत अध्ययन किया कि इसके पिघलने से 2050 तक कितनी इमारतें, सड़कें, रेलवे और अन्य निर्माण खतरे में पड़ सकते हैं.
अध्ययन यह भी कहता है कि अगर दुनिया भर के नेता पेरिस जलवायु समझौते में किए गए वादे पूरे भी करते है, तब भी 2050 तक बर्फ पिघलने से इंफ्रास्ट्रक्चर को होने वाला खतरा बना रहेगा. हालांकि रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि पूर्व औद्योगिक स्तरों के मुकाबले तापमान में वृद्धि को अगर 2 सेल्सियस से नीचे रखा जा सके तो इससे 2050 में संभावित विनाश को कम किया जा सकता है.
स्रोत - dw,विकिपीडिया,नवभारत टाइम्स ,भास्कर डॉट कॉम
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