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भारतीय आईटी एक्सपर्ट्स तथा एच-1बी वीजा

भारतीय आईटी एक्सपर्ट्स तथा एच-1बी वीजा

भारतीय आईटी एक्सपर्ट्स तथा एच-1बी वीजा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एच-1बी वीजा समेत विदेशियों को जारी होने वाले नौकरियों से जुड़े कई वीजा को सस्पेंड रखने का समय बढ़ा दिया। 31 दिसंबर तक विदेशियों को ग्रीन कार्ड और एच-1बी वीजा जारी नहीं होगा। ट्रम्प ने एच-1बी वीजा का गलत इस्तेमाल रोकने का भी निर्देश दिया है। अगर कोई वीजा से जुड़े नियमों का पालन नहीं करता है तो अमेरिका का लेबर डिपार्टमेंट उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा। हालांकि फूड इंडस्ट्री, मेडिकल और कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए वीजा जारी करने को मंजूरी दी जा सकती है। इस साल अप्रैल में एच-1 बी वीजा जारी करने की प्रक्रिया 60 दिन के लिए निलंबित की थी। 

अमेरिकी वीजा के प्रकार 

एच-1बी – विशेष काम के कर्मचारियों को दिया जाने वाला वीजा

एच-2बी –  नॉन-एग्रीकल्चरल कामों के लिए सीजनल वर्करों को दिया जाने वाला वीजा

जे-1 –  चिकित्सा और व्यवसाय का प्रशिक्षण लेने वालों के लिए दिया जाने वाला वीजा

एल-1 – ग्लोबल कंपनियों के कर्मचारियों के अमेरिका ट्रांसफर पर दिया जाने वाला वीजा 

क्यों लिया गया यह फैसला ?

अमेरिका में महामारी के कारण बेरोजगारी दर अचानक बढ़ गई है। इसका असर कम करने और अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां बचाने के लिए यह फैसला किया गया है। फिलहाल यह प्रतिबंध अस्थाई है। इस पर आगे कोई फैसला अमेरिका वीजा प्रोसेस में सुधार करने के बाद लिया जाएगा। दूसरे देशों से ट्रांसफर किए जाने वाले कर्मचारियों को जारी होने वाले एल-1 वीजा पर भी रोक लगाई गई है। 

क्या है एच -1बी वीजा ?

एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा है. यह किसी कर्मचारी को अमेरिका में छह साल काम करने के लिए जारी किया जाता है. अमेरिका में कार्यरत कंपनियों को यह वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है जिनकी अमेरिका में कमी हो. इस वीजा के लिए कुछ शर्तें भी हैं. जैसे इसे पाने वाले व्यक्ति को स्नातक होने के साथ किसी एक क्षेत्र में विशेष योग्यता हासिल होनी चाहिए. साथ ही इसे पाने वाले कर्मचारी की सैलरी कम से कम 60 हजार डॉलर यानी करीब 40 लाख रुपए सालाना होना जरूरी है. इस वीजा की एक खासियत भी है कि यह अन्य देशों के लोगों के लिए अमेरिका में बसने का रास्ता भी आसान कर देता है, एच-1बी वीजा धारक पांच साल के बाद स्थायी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं. इस वीजा की मांग इतनी ज्यादा है कि इसे हर साल लॉटरी के जरिये जारी किया जाता है. एच-1बी वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस और टेक महिंद्रा जैसी 50 से ज्यादा भारतीय आईटी कंपनियों के अलावा माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां भी करती हैं.

भारत की चिंता का कारण


टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी दिग्गज भारतीय आईटी कंपनियों का करीब 60 फीसदी रेवेन्यू अमेरिका से आता है. साथ ही ये सभी कंपनियां बड़ी संख्या में एच-1बी वीजा धारकों से काम करवाती हैं. अमेरिकी श्रम मंत्रालय के अनुसार हर साल दिए जाने वाले कुल 85000 एच-1बी वीजा में से 60 फीसदी भारतीय कंपनियों को दिए जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में इंफोसिस के कुल कर्मचारियों में 60 फीसदी से ज्यादा एच 1बी वीजा धारक हैं. इसके अलावा वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में एच-1बी वीजा धारकों में करीब 70 प्रतिशत भारतीय हैं.
इन आंकड़ों को देखकर साफ़ हो जाता है कि यदि अमेरिका में एच-1बी वीजा दिए जाने के नियमों में कोई बदलाव किया गया तो इससे सबसे ज्यादा भारतीय इंजीनियर और भारतीय कंपनियां प्रभावित होंगी. साथ ही इसका बुरा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. दरअसल, भारतीय जीडीपी में भारतीय आईटी कंपनियों का योगदान 9.5 प्रतिशत के करीब है और इन कंपनियों पर पड़ने वाला कोई भी फर्क सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा.
स्रोत - भास्कर डॉट कॉम ,सत्याग्रह.स्क्रॉल.इन 


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