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INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

भारतीय दर्शन (INDIAN PHILOSOPHY) 

भारतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY) दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है.

इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे -
  • भारतीय दर्शन की उत्पत्ति 
  • भारतीय दर्शन की विशेषताएं 
  • भारतीय दर्शन के प्रकार 
  • भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है?
  • निष्कर्ष 

भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY)

भारतीय दर्शन की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद में दार्शनिक विचारो की अभिव्यक्ति हुई है.
ऋग्वेदिक काल के लोगो ने प्रकृति को ही मानव समझ कर उपासना की है। वैदिक काल में उपासना के समय अनेक देवताओ में से कोई एक जो आराधना का विषय बनता था ,सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। इसे HENOTHEISM कहा जाता है.कालांतर में HENOTHEISM एकेश्वरवाद में परिवर्तित हो गया। 
उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है गुरु के समीप बैठना। उपनिषद रहस्य से भरे वाक्यों तथा  कथनो से भरा हुआ है।यथा -अहम् तत्वमसि ,अहम् ब्रम्हासि आदि।  इनकी संख्या 108 है.इन उपनिषदो में वेदो के निचोड़ पाए जाते है.इसलिए इन्हे वेदांत भी कहा जाता है.
भारतीय दर्शन की उत्पत्ति महाकाव्यों यथा रामायण तथा महाभारत से भी माना जाता है.सूत्रकाल में सूत्र साहित्य की रचना हुई। इसी तरह इसी काल में न्याय ,वैशेषिक ,सांख्य ,योग ,मीमांसा और वेदांत की रचना हुई। 
इस तरह भारतीय दर्शन की विकास की गाथा ऋग्वेद काल से लेकर सूत्र काल तक विस्तृत है.आधुनिक भारतीय दर्शन के विकास में महात्मा गाँधी ,विवेकानंद ,रबीन्द्रनाथ टैगोर आदि का नाम उल्लेखनीय है.

भारतीय दर्शन की विशेषताएं(FEATURES OF INDIAN PHILOSOPHY)  

  • विचारो की आज़ादी - भारतीय दर्शन में सदैव से ही विचारो की आज़ादी रही है.इसलिए यहाँ अनेक मतों को जन्म हुआ तथा प्रत्येक मत अपने पूर्व के मतों से भिन्न है। मतविभिन्ताओं की कारण भारतीय दर्शन में विविधता भी है.भारतीय दर्शन उस सागर की तरह है जिसमे विभिन्न मतों के  रूप में अनेक नदियाँ  समाहित होती है.
  • मोक्ष का महत्व - भारतीय दर्शन पाश्चात्य दर्शन की तरह केवल ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं है अपितु यह जन्म मृत्यु से परे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग सुझाता है। भारतीय दर्शन यह मानकर चलता है की मोक्ष वह अवस्था है जिसे अगर कोई आत्मा प्राप्त कर लेती है तब वह जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है तथा वह अनंत आंनद की अवस्था से पहुंच जाता है.
  • आत्मा के अस्तित्व में विश्वास - भारतीय दर्शन आत्मा में विश्वास करता है.यह आत्मा को अजर तथा अमर मनाता है तथा ऐसा मनाता है की जिस तरह कपडे पुराने होने पर हम उसे बदलकर कर नया अपना लेते है उसी तरह से आत्मा शरीर के पुराना हो जाने पर नया शरीर प्राप्त कर लेता है अर्थात यह कभी मरता नहीं केवल अपने स्वरूप को बदलता है.
  • भारतीय दर्शन आशावादी है - भारतीय दर्शन आशावादी है। यह दुखो को केवल इस जन्म के लिए नहीं बल्कि हमेशा के लिए दूर करने का उपाय सुझाता है.
  • कर्मफल पर विश्वास - भारतीय दर्शन कर्मों के फल पर विश्वास करता है। इसलिए यह हमेशा ऐसे कर्मो को करने की बात कहता है जिसके फल हमेशा अच्छा हो.परन्तु ,यह इस बात पर भी  जोर देता है की कर्म निष्काम होना चाहिए अर्थात कर्म करते समय फल की इक्छा नहीं करना चाहिए। 
  • पुनर्जन्म में विश्वास - भारतीय  दर्शन कर्म पर विश्वास करता है इसलिए यह पुनर्जन्म में भी विश्वास करता है तथा यह मान कर चलता है की कर्मो के फल के अनुसार ही मनुष्य दूसरा जन्म लेता है.
  • दुखो का कारण अविद्या - भारतीय दर्शन दुखो का कारण अविद्या को मनाता है.गौतम बुध्द ऐसे विश्वास रखने में अग्रणी थे.उन्होने तृष्णा को ही दुखो का कारण माना तथा अविद्या को तृष्णा की उत्पत्ति का कारण माना। 
  • आध्यत्मिक के साथ- साथ भौतिक - भारतीय दर्शन आध्यत्मिक के साथ साथ भौतिक भी है.  चार्वाक  दर्शन भौतिक विचारधारा पर आधारित है.यह किसी भी वस्तु पर तभी विश्वास करता है जब तक  वह उसे अपनी इन्द्रियों  से अनुभव न करले। 

भारतीय दर्शन का वर्गीकरण (CLASSIFICATION OF INDIAN PHILOSOPHY)

भारतीय दर्शन (INDIAN PHILOSOPHY) को दो भागो में वर्गीकृत किया जा सकता है -
  • आस्तिक 
  • नास्तिक 

आस्तिक दर्शन क्या है?

भारतीय दर्शन का यह वर्गीकरण वेदो के आधार पर किया गया है.आस्तिक दर्शन में वेदो के ऊपर विश्वास किया जाता है। इसके अंतर्गत निम्न दर्शन आते है.
  • न्याय 
  • वैशेषिक 
  • सांख्य 
  • योग 
  • मीमांसा 
  • वेदान्त 

नास्तिक दर्शन 
इसके अंतर्गत ऐसे दर्शन आते है जो वेदो को नहीं मानते। 
  • बौद्ध दर्शन 
  • जैन दर्शन 
  • चार्वाक दर्शन 

भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है?(IS INDIAN PHILOSOPHY IS PESSIMIST)

भारतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY) की प्रमुख विशेषता यह है की यह दुनिया को दुखमय मनाता है। भारतीय दर्शन का विकास ही आध्यत्मिक असंतोष की वजह से हुआ है.भारतीय दर्शन यह मान कर चलता है की मनुष्य के जीवन में घटने वाली घटना यथा - बुढ़ापा ,रोग ,मृत्यु आदि मनुष्य को दुःख देते है.भारतीय दर्शन में इतना अधिक दुःख पर जोर देने की वजह से पाश्चातय दार्शनिको ने भारतीय दर्शन को निराशावादी माना है.

निराशावाद उस सिद्धांत को कहते है जो विश्व को विषादमय चित्रित करता है.निराशावाद के अनुसार संसार में आशा नहीं है तथा संसार  में  प्रत्येक ओर दुःख ही दुःख है.परन्तु,भारतीय दर्शन का विस्तृत अध्ययन करने पर यह कहा जा सकता है की यह दर्शन उस डॉक्टर की तरह है जो पहले मनुष्य की बीमारी की  जांच पड़ताल करता है तथा रोग के अनुसार उसकी दवा- दारू करता है.भारतीय दर्शन पहले दुखो का वर्णन करता है,उसके कारण को जानता है तथा उसके अनुसार यह दुःखो को दूर करने का मार्ग सुझाता है.

बुद्ध दर्शन की शुरुआत  ही इस कथन से होती है की दुनिया दुखमय है, परन्तु यह दर्शन अपने अन्य आर्यसत्यो  के  द्वारा इस दुःख से मुक्ति का मार्ग भी बताता है.इसके अलावा यह अष्टांगिक मार्ग के द्वारा निर्वाण प्राप्ति का मार्ग सुझाता है.इसी तरह जैन दर्शन त्रिरत्न के माध्यम  से दुखो से मुक्ति प्राप्त कर परिनिर्वाण प्राप्त करने के लिए मानवता को रास्ता बताता है.
भारतीय दर्शन कर्म सिद्धांत पर आधारित है। यह कर्मो के अनुसार फल प्राप्ति की बात करता है। अतः यह किसी भी स्थिति में निराशावादी हो ही नहीं सकता। यदि यह  निराशावादी होता तो कर्मो से पलायन की बात करता। जबकि भारतीय दर्शन अच्छे कर्म करने पर ही जोर देता है.क्योकि कर्म के अनुसार आपका भविष्य तथा आपका अगला जन्म निर्धारित होता है.
भारतीय दर्शन इसलिए भी निराशावादी नहीं हो सकता क्योकि यह आध्यत्मिकता पर आधारित है.विलियम जेम्स के शब्दो में आध्यात्मवाद उसे कहते है जो जगत में शाश्वत नैतिक व्यवस्था मानता है जिसमे प्रचुर आशा का संचार होता है.
जी.एच.पामर ने निराशावाद की सराहना करते हुए तथा आशावाद की निंदा करते हुए इन शब्दों का प्रयोग किया है-OPTIMISM SEEMS TO BE MORE IMMORAL THEN PESSIMISM,FOR PESSIMISM WARNS OF DANGERS.WHILE OPTIMISM LULLS INTO FALSE SECURITY.

निष्कर्ष (CONCLUSION)

इस तरह भारतीय दर्शन (INDIAN PHILOSOPHY) दुनिया का सबसे पुराना दर्शन है जो प्रकृति में पाए जाने वाले तत्वों की उपासना से प्रारम्भ होकर उपनिषदो के माध्यम से मृत्यु ,मृत्यु के बाद का जीवन ,पुनर्जन्म ,मोक्ष आदि गूढ़ तत्वों का संधान करता हुआ बुद्ध तथा जैन दर्शन के संदेहवाद में प्रवेश करता है एवं विभिन्न मतों के द्वारा ईश्वर के होने या न होने पर चर्चा करते हुए अनंत आनंद का मार्ग बताता है.

स्रोत - भारतीय दर्शन की रुपरेखा ,डॉ. हरेंद्र प्रसाद सिन्हा 
          भारतीय दर्शन, निगम 



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