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भारत में राज्यों का पुनर्गठन

भारत में राज्यों का पुनर्गठन
राज्यों का पुनर्गठन

 भारत को राज्यों का संघ कहाँ जाता है। भारत के राज्यों में विभिन्न सांस्कृतिक विभिन्नता दिखाई देती है। वर्तमान में राज्यों का जैसा स्वरूप दिखाई देता है, वह एक लंबे कालक्रम में प्राप्त हुआ है। वर्तमान में स्थापित राज्य स्वतंत्रता पूर्व प्रांतों में विभाजित था, भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रसार के लिए इन प्रांतों का अनेक दमनकारी नीतियों के द्वारा अधिग्रहण कर अपने नियंत्रण में कर ब्रिटिश प्रांत में परिवर्तित कर लिया गया तथा कुछ राज्य स्वतंत्रता प्राप्ति तक देशी रियासतों के रूप में ही बनी रही। इस प्रकार स्वतंत्रता के पश्चात संविधान द्वारा राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति संसद को प्रदान की गई है।                      
  इस लेख में हम निम्न बिंदुओं पर चर्चा करेंगे-
1. राज्य की परिभाषा
2. राज्यों के पुनर्गठन संबंधी संसद की शक्तियां
3. राज्य पुनर्गठन संबंधी निर्मित समितियां
4.राज्यों के गठन से संबंधित संविधान संशोधन
5 निष्कर्ष
   राज्य की परिभाषा -
संविधान में भारत को राज्यों का संघ घोषित किया गया है। विभाजन के पश्चात भारत में एक सुदृढ़ केंद्रीय युक्त संघ की स्थापना का उद्देश्य राजनीतिक एवं प्रशासनिक दोनों ही रहा है। भारत संघ शब्द अपने आप में ज्यादा व्यापक अर्थ लिए हुए हैं। इसमें न केवल राज्य शामिल है, अपितु इसमें संघ शासितप्रदेश एवं ऐसे क्षेत्र जिन्हें भविष्य में भारत द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है, उसे भी शामिल किया गया है। इसके बावजूद संविधान को पूरी तरह से संघात्मक नहीं बनाया जा सका है। भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है, कि यह संघात्मक व एकात्मक दोनों प्रकार के शासन की लक्षण दर्शाता है। इसके संबंध में डॉक्टर अंबेडकर ने संघ शब्द का आशय व्यक्त करते हुए कहा था कि "यद्यपि भारत को एक फेडरेशन होना था, लेकिन यह फेडरेशन राज्यों के बीच हुए करार का परिणाम न था, और न ही किसी राज्य को फेडरेशन से पृथक होने का अधिकार भी दिया गया है। फेडरेशन एक संघ है, क्योंकि यह कभी समाप्त नहीं होगा फेडरेशन को अविनाशी माना गया है। 
 इस प्रकार संविधान में स्पष्ट है, कि संघ का नाम इंडिया अथवा भारत है, तथा प्रथम अनुसूची में दिए गए इसके सदस्यों को राज्य कहा जाता है। भारतीय संविधान के प्रारंभ में राज्यों की तीन श्रेणियां थी, जो निम्न थी- 
(अ) राज्य के राज्य क्षेत्र, 
(ब) संघ राज्य क्षेत्र,
(स) सरकार द्वारा अर्जित राज्य क्षेत्र,
जो कि सातवें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के प्रवर्तन के समय तक यह बनी रही। उक्त संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के पश्चात तथा राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के द्वारा संघ के अधीन सभी राज्यों को एक ही स्तर प्रदान किया गया। इस अधिनियम के श्रेणियों को समाप्त कर राज्यों को केवल दो श्रेणियों रखा गया। यह श्रेणियां निम्न थी -
(१) राज्य संघ राज्य क्षेत्र, 
(२) संघ राज्य क्षेत्र,
जिसके संघ राज्य क्षेत्र के अंतर्गत अर्जित राज्य क्षेत्र को सम्मिलित कर दिया गया। वर्तमान में भारत में 29 राज्य एवं 9 केंद्र शासित प्रदेश क्षेत्र हैं। संविधान के उपबंध सभी राज्यों पर समान रूप से लागू होते हैं, परंतु सामाजिक संरचना एवं सांस्कृतिक संरक्षण के कारण कुछ क्षेत्रों को पांचवी एवं छठवीं अनुसूचीओं में अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में विशेष उपबंध किया गया है।


राज्यों के पुनर्गठन सम्बन्धी संसद की शक्तियां-
भारतीय संविधान में नए राज्यों के गठन और राज्यों के सीमा में परिवर्तन से संबंधित प्रावधानों को भाग 1 में रखा गया है। जिसके अंतर्गत उक्त शक्तियां संसद को प्रदान की गई है। संसद को संविधान द्वारा प्रदत यह शक्तियां इतनी विस्तृत हैं, कि वह भारत के राजनीतिक मानचित्र का पुनर्निर्धारण भी कर सकती है। संसद की इस शक्ति ने राज्य के और क्षेत्रीय एकता को स्थायित्व को किसी भी प्रकार की गारंटी नहीं दी गई है। इसलिए इसके संबंध में कहा जाता है, कि भारत विभक्त राज्यों का अविभक्त राज्य है। संसद संघ सरकार राज्य को समाप्त कर सकती है, परंतु राज्य सरकार संघ को समाप्त नहीं कर सकती।  
भारतीय संविधान में राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में संसद को निर्णय शक्तियां प्रदान किया गया हैं, जो निम्न प्रकार है-
(१) नए राज्यों का प्रवेश व स्थापना-
 संविधान के भाग 1 के अनुच्छेद 2 के अंतर्गत संसद को कुछ निर्बंधन और शर्तों के साथ नए राज्यों के प्रवेश स्थापना करने की शक्ति प्रदान की गई है अनुच्छेद  को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, प्रथम नए राज्यों को का संघ में शामिल करने की शक्ति, द्वितीय नये राज्यों को स्थापित करने की शक्ति। पहले भाग का संबंध उन राज्यों से है, जो पहले से ही से ही विद्यमान है तथा दूसरे भाग का संबंध ऐसे राज्य से है, जो भविष्य में स्थापित या अर्जित किए जा सकते हैं।
(२) नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों सीमाओं या नामों में परिवर्तन-
संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत संसद को नए राज्यों की स्थापना एवं वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन करने की शक्ति दी गई है।  
अनुच्छेद ३ में राज्यों के स्थापना निम्न प्रकार से की जा सकती हैं- 
किसी वर्तमान राज्य से उसका प्रदेश अलग करके, अथवा
दो या अधिक राज्यों को मिलाकर, अथवा 
इसे राज्यों के भाग को मिलाकर, अथवा
किसी प्रदेश को किसी राज्य के साथ मिलाकर।
                     संसद अनुच्छेद 3 के अधीन किसी राज्य की सीमा को बढ़ा सकती हैं, किसी राज्य की सीमा को घटा सकती है, किसी राज्य की सीमाओं को बदल सकती है, किसी राज्य के नाम को बदल सकती है। इस प्रकार भारतीय संविधान राज्यों के क्षेत्रों और सीमाओं को बिना उनकी सहमति के परिवर्तित करने का अधिकार संसद को प्रदान करती हैं। संसद सामान्य बहुमत से विधि बनाकर नए राज्यों की स्थापना कर सकती है, और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं और नामों में परिवर्तन कर सकती हैं। इस अनुच्छेद में संसद को दिए गए उक्त शक्तियों का उपयोग राष्ट्रपति के सिफारिश के बिना नहीं किया जा सकता है, और यदि किसी राज्य के क्षेत्र सीमा और नाम में परिवर्तन से संबंधित विधेयक लाना जाना है, तो राष्ट्रपति उक्त राज्य के विधान मंडल को विचारणर्थ भेजेगा और भेजे जाने के पश्चात विधानमंडल राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय के भीतर विचार व्यक्त नहीं करता, तो राष्ट्रपति संसद में विधेयक प्रस्तुत कर सकता है, और यदि निर्धारित समय में विधानमंडल विचार व्यक्त कर देता है तो भी संसद विधानमंडल के दिए गए सुझाव को स्वीकार करने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य नही है।
 राज्य पुनर्गठन संबंधी निर्मित समितियां-
स्वतंत्रता के समय भारत के प्रांत ब्रिटिश प्रान्त और देशी रियासतों में बंटा हुआ था। स्वतंत्रता के बाद पारित स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में भारत पाकिस्तान पृथक होने के बाद विभक्त प्रान्तों को भारत या पाकिस्तान दोनो में से किसी एक में सम्मलित होने की बात कही। इसके अतिरिक्त प्रान्तों को पृथक रहने की भी आजादी दी गई थी। इसके पश्चात रियासतों के एकीकरण द्वारा 552 देशी रियासतों में से 549 भारत में शामिल हो गई और बची हुई 3 रियासतों हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर ने भारत में शामिल न हो स्वतंत्र रहना स्वीकार किया। परंतु इन्हें भी भारत में शामिल कर लिया गया। एकीकरण की यह व्यवस्था अस्थाई थी जिसे स्थायी करने के लिए राज्यो के पुनर्गठन हेतु अनेक समितियाँ और आयोग बनाई गई कि वो इससे संबधित अपनी सुझाव दे। ये समितियाँ निम्न थी-
धर आयोग-
भारत के दक्षिण भाग से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के मांग पर 1948 में धर आयोग का गठन एस.के.धर की  अध्यक्षता में किया गया। जिसने राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर न कर प्रशासनिक आधार पर किये जाने की सिफारिश की। जिसके सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया।
जे वी पी समिति-
1948 में जेवीपी समिति गठन किया गया। जिसके सदस्य जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, और पटाभीसीतारमैया थे। इसलिए इस समिति को जेवीपी समिति के नाम से जाना गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को अस्वीकार कर दिया।
                       इसके बावजूद पोट्टी श्रीरामलू द्वारा आंध्र प्रदेश का भाषा के आधार पर के मांग पर भूख हड़ताल किए जाने पर सरकार को विवश होकर, अक्टूबर 1953 में मद्रास से तेलुगु भाषी क्षेत्र को पृथक कर आंध्र प्रदेश राज्य का गठन किया गया। यह राज्य भाषा के आधार पर गठित प्रथम राज्य था।
 फजल अली आयोग -
 भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के पश्चात अन्य राज्यों द्वारा भी भाषा के आधार पर गठन की मांग उठने लगी, इन मांगों को देखते हुए के.एम. पाणिकर और कुंजरू सदस्यों की उपस्थिति में और फजल अली की अध्यक्षता में फजल अली आयोग का गठन किया गया। फजल अली आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर किए जाने का समर्थन तो किया, परंतु 'एक राज्य एक भाषा' के सिद्धांत को स्वीकार नही किया, इसका मुख्य कारण देश की एकता और सुरक्षा के अनुरक्षण एवं संरक्षण, भाषा, सांस्कृतिक एकरूपता, वित्तीय आर्थिक एवं प्रशासनिक तर्क आदि कार को बताया गया। साथ ही आयोग द्वारा यह सलाह दी गई, कि अनुसूची 1 में राज्यों को जिन चार भागों में विभक्त किया गया है, उसमें परिवर्तन कर उन्हें दो भागों अर्थात राज्य व केंद्र शासित क्षेत्रों में रखा जाना चाहिए। सरकार द्वारा इस आयोग के द्वारा दी गई सिफारिशों को अंशतः स्वीकार करते हुए, राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 और सातवें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुसूची 1 में संशोधन कर राज्यों को दो वर्गों में रखा गया। जिसके तहत परिणाम स्वरूप नवंबर 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया। जो कि निम्न है-
            राज्य                            केंद्र शासित प्रदेश
1.आंध्र प्रदेश            1.अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह                                                 
2. असम                  2.दिल्ली
3. बिहार                  3.हिमाचल प्रदेश
4.मुंबई                     4.त्रिपुरा
5.मध्य प्रदेश              5.मणिपुर
6.मद्रास                    6.लका दीव,मिनी काय और          
7.मैसूर                        अमीन दीवी द्वीप समूह
8.पंजाब 
9.उड़ीसा 
10.राजस्थान 
11.उत्तर प्रदेश 
12.जम्मू एवं कश्मीर 
13.केरल 
14.पश्चिम बंगाल
राज्यों के गठन से संबंधित संविधान संशोधन -
  • 1 नवंबर 1956 को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों के गठन के पश्चात भारत में होने वाले लगातार राजनीतिक प्रशासनिक परिवर्तन एवं भाषा और सांस्कृतिक महत्त्व के आधार पर समय-समय पर अन्य राज्यों की के निर्माण के गठन की मांग उठने लगी इन मांगों के आधार पर महत्वपूर्ण संविधान संशोधनों के द्वारा अन्य राज्यों का गठन किया गया जो खेल जोकि निम्न हैं-                
1.1960 में 15वाँ संविधान संशोधन द्वारा बम्बई को मराठी भाषी और गुजराती भाषी राज्यों को विभक्त कर महाराष्ट्र और गुजरात राज्य बनाया गया।
2.1954 में 10वाँ संविधान संशोधन द्वारा दादर व नागर हवेली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।
3.1962 में 12वाँ संविधान संशोधन द्वारा गोवा, दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। जिसमें से गोवा को 1987 में पूर्ण राज्य बनाया गया।
4.1962 में 14वाँ  संविधान संशोधन द्वारा अधिगृहित क्षेत्र के रूप में पुदुचेरी को संघ शासित प्रदेश बनाया गया।
5.1963 में  16वाँ संविधान संशोधन द्वारा असम राज्य का गठन किया गया।
6.1966 में 17वाँ संविधान संशोधन द्वारा पंजाब से पंजाबी भाषी क्षेत्र को शाह आयोग की सिफारिश पर पंजाब राज्य एवं हिंदी भाषी क्षेत्र को हरियाणा राज्य बनाया गया था, इसके पहाड़ी क्षेत्र को हिमांचल प्रदेश और चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। जिसमें से 1971 हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया।
7.1972 में 19वाँ, 20वाँ, 21वाँ संविधान संशोधनों द्वारा 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग अधिनियम के द्वारा गठित केंद्रशासित प्रदेश मणिपुरा (19वाँ), त्रिपुरा (20वाँ) को राज्य का दर्जा दिया गया। साथ ही मेघालय (21वाँ) को पृथक राज्य बनाया गया। उसके अलावा अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम दो केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आए।
8.1975 में 36 वाँ संविधान संशोधन द्वारा सिक्किम का भारत में विलय के पश्चात सिक्किम एक पृथक  राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
9.1987 में  23वाँ, 24वाँ, संविधान संशोधन द्वारा मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा जोकि पहले संघ शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में थे उन्हें वह राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
10. 2000 में छत्तीसगढ, उत्तराखंड, झारखंड तीन नए राज्य अस्तित्व में आए।
11. 2014 में आंध्र प्रदेश से तेलंगाना राज्य को पृथक कर नया बनाया गया।
12. 2019 में जम्मू और लद्दाख दो संघ शासित प्रदेश बनाये गए।    
 अतः उक्त संविधान संशोधन के पश्चात भारत में वर्तमान 29 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में बने हुए हैं। भारतीय संविधान में राज्यों के सीमा निर्धारण के साथ-साथ राज्य के नामों में परिवर्तन की शक्ति भी संसद के पास है। राज्य के नामों में परिवर्तन करने की शक्ति का सबसे प्रथम बार प्रयोग 1950 में संयुक्त प्रांत का नाम उत्तर प्रदेश परिवर्तित कर किया गया। उसके बाद 1969 मद्रास का नाम तमिलनाडु, 1973 में मैसूर का नाम कर्नाटक, 1992 में दिल्ली का नाम एनसीआर, 2006 में उत्तरांचल का नाम उत्तराखंड, तथा पांडिचेरी का नाम पुडुचेरी, और वर्ष 2011 में उड़ीसा का नाम ओडीशा कर दिया गया।
निष्कर्ष -
राज्यो और केंद्र शासित प्रदेश के गठन के पश्चात हुए भारत के मानचित्र में परिवर्तन ने भारत को एक ऐसा स्वरूप प्रदान किया है। जिसके द्वारा भारत की प्रशासनिक और राजनीति समस्याओं को समाधान मिल सके। भारतीय संविधान में संसद को प्रदान की गई राज्यों के गठन, राज्यों के नाम में परिवर्तन, सीमा में परिवर्तन आदि की शक्ति संसद के महत्व को प्रकट करती है। इस प्रकार संसद में अपनी शक्ति का प्रयोग कर भारत की भाषा एवं सांस्कृतिक महत्त्व को बढ़ाकर, देश की सुरक्षा और अनुरक्षण प्रदान किया है।

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