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चक्रवात

चक्रवात

चक्रवात
कोरोना के खतरे के बीच भारत के आठ राज्यों में अम्फान चक्रवात का खतरा भी मंडरा रहा है.उल्लेखनीय है की भारत में सागरो के माध्यम से उत्पन्न होने वालो चक्करदार हवाओं को चक्रवात के नाम से जाना जाता है.यह एक न्यून वायुभार का ऐसा क्षेत्र होता है जिसके केंद्र में न्यून वायुदाब स्थित होता है। उत्तरी गोलार्ध में चक्रवात में वायु की दिशा घडी की सुई की विपरीत दिशा तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इसके ठीक विपरीत होता है अर्थात घडी की सुई की दिशा में होता है। 
इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे -

  1. चक्रवात की विशेषताएँ 
  2. चक्रवातों के प्रकार 

चक्रवातों की विशेषताएँ 

    westerlies
  1. यह सदैव स्थायी पवनो की दिशा में गति करता है। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात पछुआ पवनो(westerlies) की दिशा में एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवातों मानसून पवनो की दिशा में गति करता है। 
  2. इसका वेग तथा स्थायित्व निम्न दाब की तीव्रता पर निर्भर करता है.
  3. इसमें चारो ओर हवाएं केंद्र की और चलती है। 
  4. वर्षा चक्रवात के अग्र भाग में चलता है.
  5.  उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की गति अत्यंत त्तीव्र होती है तथा इनके द्वारा अत्यधिक विनाश होता है। 
  6.  उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को विभिन्न स्थानो पर भिन्न- भिन्न नामो से जाना जाता है.
  7. यह ताप विनिमय (heat exchange) में सहायक होता है.
  8. यह पृथ्वी के प्रमुख पवन तंत्रो में सम्बन्ध स्थापित करते है.
  9. यह वृताकार तथा अंडाकार होता है। 

चक्रवातों के प्रकार

चक्रवातों को उनकी उत्पति के आधार पर दो भागो में विभाजित किया जा सकता है -
  1. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
  2.  उष्णकटिबंधीय चक्रवात

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात

पृथ्वी के मध्य तथा उच्च अक्षांश में उत्पन्न होने वाले चक्रवातो  को शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। मध्य तथा उच्च अक्षांश में जिस क्षेत्र से यह गुजरते हैं. वहां मौसम संबंधी अवस्थाओं में अचानक तेजी से बदलाव आते हैं.इनके केंद्र तथा बाहर की ओर स्थित दाब  में 10 से 20 एमबी तथा कभी-कभी 35 एमबी का अंतर होता है इनका आदर्श दीर्घ व्यास 1920 किलोमीटर  तथा लघु व्यास 1040 किलोमीटर लंबी होती है. यह चक्रवात पश्चिम से  पूर्व दिशा में भ्रमण करते हैं. गर्मियों में इनकी औसत गति प्रति घंटा 32 किलोमीटर तथा जाड़े में 48 किलोमीटर होता है. चक्रवात के सामने वाले भाग को अग्रभाग या वाताग्र और पीछे वाले भाग को पृष्ठभाग   कहा जाता है.चक्रवात में बादलो से घिरा आकाश और फुहार जैसी वर्षा की मौसमी दशाएं कई दिनों तक विद्यमान रहता है.
इस चक्रवात से प्रभावित क्षेत्र प्रशांत महसागर ,कनाडा ,अमेरिका मध्य अटलांटिक महासागर एवं उत्तर पश्चिम यूरोप आदि है.
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
यह चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीत काल में आते है। परन्तु ,दक्षिणी गोलार्द्ध में जलभाग अधिक होने के कारण वर्ष भर आते है.
इन चक्रवातों की उत्त्पत्ति दो विभिन्न तापमान तथा आद्रता वाली वायुराशियों के विपरीत दिशा में आकर मिलने से होती है। कम तापमान तथा आद्रता वाली वायुराशि ध्रुवीय प्रदेशो (polar regions) से तथा अधिक तापमान तथा आद्रता वाली वायु राशि उपोष्ण (subtropical high) प्रदेशो से आती है.




ये दोनों वायु राशियां 60 डिग्री अक्षांश पर आपस में  मिलती है.परन्तु यह तुरंत आपस में नहीं मिलती। बल्कि कुछ समय तक इनके बीच एक सीमा बनी रहती है। जिसे ध्रुवीय वाताग्र कहा जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में ध्रुवीय वाताग्र तीन क्षेत्रो में पाए जाते है :- 1 Aleutian Islands के पास 2 भूमध्य सागर के पास 3  आइसलैंड के पास। 

Aleutian Islands

Aleutian Islands

Mediterranee
भूमध्य सागर

शीतोष्ण चक्रवात को निम्न अवस्थाओं में दिखाया गया है.


प्रथम अवस्था में गर्म तथा ठंडी  हवाएं एक दूसरे के समान्तर चलती है तथा 
वाताग्र स्थाई चलती है। दूसरी अवस्था में दोनों हवाएं एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास करती है जिसके कारण लहरनुमा वाताग्र बनता है। तीसरी अवस्था में चक्रवात का रूप प्राप्त कर लेता है.चौथी अवस्था में शीट वाताग्र के तेजी से आगे बढ़ने के कारण उष्ण क्षेत्र काम होने लगता है। पांचवी अवस्था में चक्रवात का अवसान प्रारम्भ हो जाता है। छठी अवस्था में चक्रवात का अंत हो जाता है.
चक्रवात में मौसम तथा वर्षा 

1 चक्रवात का आगमन - पश्चिमी दिशा से आने वाला चक्रवात जब समीप होता है तो पक्षाभ (cirrus clouds) तथा पक्षाभ स्तरी(CIRRO-STRATUS) बादल दिखाई देता है.चन्द्रमा तथा  चारो ओर प्रभामंडल (HALO )बन जाता है.
cirrus clouds
cirrus clouds
cirrostratus clouds
cirrostratus clouds
वायु की दिशा पूर्व से बदल कर दक्षिण पश्चिम हो जाती है। 

उष्ण वाताग्र वर्षा - उष्ण वाताग्र के आने पर वर्ष प्रारम्भ हो जाती है.इस वाताग्र में गर्म हवा ऊपर उठती है।अतः वर्षा मंद गति से परन्तु अधिक देर तक विस्तृत होती है.


उष्ण वृतांश (WARM SECTOR)-  उष्ण वाताग्र के गुजर जाने पर उष्ण वृतांश का आगमन होता है। मौसम में अचानक तथा तीव्र गति से परिवर्तन हो जाता है.हवा की दिशा दक्षिणी पूर्व ,आकाश का तापमान शीघ्रता से बढ़ने लगता है। वायुदाब काम होने लगता है.मौसम साफ़ तथा सुहाना हो जाता है.

WARM SECTOR
WARM SECTOR 




शीत वाताग्र - उष्ण वृतांश के गुजर जाने पर शीत वाताग्र आ जाता है ,जिसके साथ तापमान गिरने लगता है तथा सर्दी बढ़ने लगती है। ठंडी हवा गर्म हवा को ऊपर धकलने लगती है तथा हवा की दिशा में भी अंतर आ जाता है। आकाश में फिर से बादल घिर आते है तथा वर्षा फिर से प्रारम्भ हो जाती है.


शीत वाताग्र प्रदेशीय वर्षा आकाश में काले कपासी वर्षा
(cumulonimbus clouds
(cumulonimbus clouds)

(cumulonimbus clouds) बादल छा जाते है तथा तीव्र वर्षा प्रारम्भ हो जाती है।


 शीत वृंताश (cold sectors) शीत के गुजरने के बाद शीत वृतांश का आगमन हो जाता है। आकाश मेघरहित होकर स्वच्छ, तापमान गिरने के साथ वायुदाब में वृद्धि होने लगता है।तथा  मौसम चक्रवात की पूर्व की दशा में पहुंच जाता है.

 उष्णकटिबंधीय चक्रवात(cyclone)

उष्णकटिबंधीय चक्रवात

कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य उत्पन्न चक्रवातो को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं. यह ग्रीष्म काल में उत्पन्न होते हैं जब तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है. चक्रवात के केंद्र में वायुदाब बहुत कम होता है. समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती है परंतु इनकी संख्या बहुत कम होती है।
इनकी उत्पत्ति केवल गर्म समुद्रों के ऊपर होती है। भूमध्य रेखा के ऊपर यह नहीं पाए जाते क्योंकि यहां पर कोरिओलिस बल की अनुपस्थिति होती है।
इस चक्रवात का व्यास 80 से 300 मीटर तक होता है यह चक्रवात  सागरों के ऊपर बहुत तेज गति से चलते हैं. परंतु, स्थलों तक  पहुंचते-पहुंचते कमजोर हो जाते हैं तथा आंतरिक भागों में पहुंचने के पहले समाप्त हो जाते हैं।
कमजोर चक्रवात 32 किलोमीटर प्रति घंटे की चाल से भ्रमण करते हैं वही  हरिकेन 120 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक तेज रफ्तार से चल सकते हैं. उष्णकटिबंधीय चक्रवात में वातग्र नहीं होते। इसके प्रत्येक भाग में वर्षा होती है. यह सदैव गतिशील नहीं होते। कभी कभी एक ही स्थान पर कई दिन तक स्थाई हो जाते हैं तथा तेज गति से वर्षा करते रहते हैं।
इनका भ्रमण क्षेत्र व्यापारिक हवाओं(trade winds) के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में अग्रसर होते हैं. अपनी प्रचंड गति तथा तूफानी स्वभाव के कारण यह चक्रवात अत्यंत विनाशकारी होते हैं।
व्यापारिक हवाए
ट्रेड विंड्स 

पश्चिमी द्वीप समूह के निकट हरिकेन, चीन ,फिलीपीन्स तथा जापान के निकट टायफून तथा हिन्द महासागर  में साइक्लोन कहा जाता है।
hurricans
हरिकेन

विशेषताएं


  1. इसकी समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती है।
  2. दाब प्रवणता तीव्र होती है।
  3. इसका मध्यवर्ती भाग अपेक्षाकृत शांत और वर्षा विहीन होता है जिसे  चक्रवात की आंख (eye of cyclone) कहा जाता है।
  4. यह महासागरों के केवल पश्चिमी भागों में जन्म लेता है।
  5. इसके पीछे कोई प्रतिचक्रवात नहीं होता।
  6. इसकी ऊर्जा का मुख्य स्रोत संघनन से मुक्त हुई गुप्त ऊष्मा होती है।
  7. यह चक्रवात मुख्य रूप से 5 से 15 डिग्री अक्षांश के मध्य दोनों गोलार्ध में सागरों के ऊपर पाए जाते हैं हरिकेन दक्षिणी अंटार्कटिक महासागर दक्षिणी पूर्वी प्रशांत महासागर तथा भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5 डिग्री अक्षांश के मध्य बिल्कुल नहीं देखे जाते हैं।

 टॉरनेडो (Tornado) यह आकार की दृष्टि से सबसे छोटा चक्रवात होता है। परंतु, यह अत्यंत प्रलयकारी तथा प्रचंड होता है। यह बहुत अधिक वेग से प्रवाहित होता है यह मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका तथा गौण रूप से ऑस्ट्रेलिया में उत्पन्न होते हैं. इसके आगमन के समय आकाश में काले बादल छा जाते हैं. इनका आकार एक कीप या छलनी के समान होता है जिसका पतला भाग धरातल से संबंधित होता है चौड़ा भाग ऊपर कपासी वर्षा मेघ से जुड़ा होता है.

tornado

 


इसके केंद्र में वायुदाब न्यूनतम होता है तथा परिधि पर यह अत्यधिक होता है जिसकी वजह से हवाएं केंद्र की ओर चलती हैं. इसमें कई बार हवाएं 800 किलोमीटर प्रति घंटा की चाल से भी प्रवाहित होती है।
यह मुख्य रूप से बसंत तथा  ग्रीष्म काल के आरंभिक दिनों में उत्पन्न होते हैं। इसकी उत्पत्ति भी वाताग्रों  से संबंधित होती है जहॉ पर शीत वाताग्र के सहारे ठंडी हवाएं आद्र उष्ण कटिबंधीय गर्म हवाओ को ऊपर ठेलती है तो टॉरनेडो की उत्पत्ति होती है.
कभी कभी धरती के स्थानीय रूप से अचानक गर्म होने के कारण संवहन तरंगे उठती है जिनसे टॉरनेडो की उत्पत्ति होती है.

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण 

20 वी शताब्दी के प्रारम्भ में चक्रवातों के नामकरण की शुरुवात हुई। इसकी शुरुवात एक ऑस्ट्रेलियाई पूर्वानुमान-कर्ता द्वारा हुई। वह जिन राजनीतिज्ञों को नापसंद करता था उनके नाम पर उसने चक्रवातों का नाम रखना प्रारम्भ किया है। दूसरे विश्व युद्ध के समय एक अमरीकी मौसम विज्ञानी ने इन चक्रवातो  का अपनी पत्नी प्रेमिका के नाम पर नामकरण शुरू किया। आज चक्रवातों का नाम विश्व मौसम विज्ञान संगठन के सदस्य राष्ट्रों के द्वारा सुझाए गए नामों के आधार पर नामकरण किया जाता है नए नामों की सूची में पुरुष महिला फूलों के नाम आदि को आधार बनाया जाता है।
45 ° E - 100 ° E के बीच उत्तर हिंद महासागर में, भारत के मौसम विभाग द्वारा उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण किया जाता है. मई 2020 में, चक्रवात अम्फान के नामकरण ने 2004 में स्थापित नामों की मूल सूची को समाप्त कर दिया।नामों की एक नई सूची तैयार की गई है और इसका उपयोग अम्फान के बाद आने वाले तूफानों के लिए वर्णमाला क्रम में किया जाएगा।
संदर्भ
विश्व का भूगोल एस.के.ओझा
मौलिक भूगोल के.सिद्धार्थ ,मुखर्जी ,बजेन्द्र नारायण
भूगोल खुल्लर

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