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हमारे लिए क्यों जरूरी हैं वायरस

हमारे लिए क्यों जरूरी हैं वायरस

VIRUS

विषाणु (virus) अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं।[1] ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है.
विषाणु, लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजापेचिशटायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवीइन्फ्लूएन्जा वाइरसपोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ठ प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते है। 
bacteriophage
विषाणु के प्रकार :- परपोषी प्रकति के अनुसार विषाणु तीन प्रकार के होते हैं।
  • 1.पादप विषाणु (plant virus)
  • 2.जन्तु विषाणु (animal virus)
  • 3.जीवाणुभोजी (bacteriophage) 

  1. हम वायरस की दुनिया (वाइरोस्फियर) के बारे में बहुत कम जानते हैं, जबकि व्यापक रूप से यह स्वीकारा जा चुका है कि हमारे इर्द-गिर्द अरबों वायरस हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि मात्र समुद्र में ही 1031 वायरस हो सकते हैं।
  2. ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने महासागरीय जल से एकत्र किए गए जेनेटिक सामाग्री के अध्ययन में लगभग 15 हजार वायरस होने के प्रमाण प्राप्त किए।
  3. इस ओर अभी भी जानकारी का अभाव बरकरार है। जानकारी के अभाव का स्तर यह है कि वायरस को वर्गीकृत (टेक्सोनॉमी) करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी केवल 6,152 वायरसों को ही चिन्हित या नामित कर पाई है। अभी तक हमने केवल उन वायरसों का ही अध्ययन किया है जो खसरा, एचआईवी (ह्यूमन एमिनोडिफिसिंयंसी) और पोलियो जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं।
  4. इबोला, जीका, सार्स, मर्स (मिडिल इस्ट रिस्पेरिटरी सिड्रोंम) और कोविड-19 जैसे वायरस समय-समय पर उभरते रहे हैं। वायरस की अब तक ज्ञात 60 प्रजातियों में से 20 ऐसी प्रजातियां हैं, जो इंसानों में बीमारियों का कारण हो सकती हैं।
  5. वायरस भी उस प्रिमॉर्डियल सूप (प्रारम्भिक ऊतकों) का हिस्सा थे, जिनसे पृथ्वी पर जीवन उत्पन्न हुआ। ये वायरस चिंपैजी से मानव विचलन के बाद से प्रोटीन अनुकूलन के 30 प्रतिशत के लिए भी जिम्मेदार हैं।
  6. मनुष्य ने पाया कि पिछले वायरल संक्रमणों के निशान उनके जीन में ही एकीकृत या जुड़े हुए हैं। मानव जीनोम का लगभग आठ प्रतिशत भाग रेट्रोवायरल डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) है जो खुद को मानव रोगाणु-रेखा (जर्म-लाइन) में सम्मिलित करता है।
  7. मानव के उद्विकास (विकास) में वायरस की भूमिका को समझाने के लिए कोई जीवाश्मीय प्रमाण नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि मानव प्लेसेंटा (अपरा) का निर्माण एक वायरस इंफेक्शन के कारण हुआ था। जो बहुत समय पहले हमारे पूर्वजों के शरीर में प्रवेश कर सकता था और एक अस्तर निर्माण में सहायक होता था,जिससे मां के शरीर में भ्रूण की रक्षा हो सकती थी।
  8. वायरस की लाभकारी भूमिकाएं भी हैं।अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस-2020 की थीम “हमारे समाधान प्रकृति में निहित हैं” ( अवर सल्यूशन ऑर इन नेचर – ) है। वायरस इन समाधानों में बहुत कुछ प्रदान कर सकते हैं।
  9. सबसे महत्वपूर्ण एक बैक्टीरियोफेज (जीवाणुभक्षी) के रूप में इसकी भूमिका है। ये वह वायरस हैं, जो बैक्टीरिया को मार सकते हैं और एंटीबायोटिक के प्रति जीवाणुओ का प्रतिरोधी स्वभाव विकसित कर लेने की समस्या को हल करने के संभावित तरीके के रूप में देखे जाते हैं, क्योंकि यह एंटीबायोटिक दवाओं का विकल्प प्रदान करते हैं।
  10. डॉक्टर वहां एस्चेरेचिया कोलाई, स्टैफिलोकॉकस ऑरियस और स्यूडोमोनास एरूगिनोसा पर प्रभावी अनुकूलित बैक्टीरियोफेज (जीवाणुभक्षी)  का उपयोग कर रहे हैं। जब घाव के ऊपर यह लगाया जाता है तो कई रोगियों को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।
  11. बैक्टीरियोफेज भी लोगों को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिएये वायरस श्लेष्म (म्यूकस) में पाए गए हैं - वह पतला पदार्थ जो मुंह, नाक, पलकों और पाचन तंत्र के अंदर होता है। श्लेष्म में म्यूसिन होते हैं, जो प्रोटीन और शर्करा से बने अणु होते हैं, और रसायनों से घिरे होते हैं। यह रोगाणुओं से लड़ सकते हैं।
  12. क्टीरियोफेज श्लेष्म (म्यूकस) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें अणु होते हैं जो शर्करा श्रृंखलाओं से बंधे होते हैं। मसूड़ों के पास लार में, प्रत्येक बैक्टीरिया के लिए चार फेज देखे जा सकते हैं। यह दांतों को सड़ने से बचाता है।
  13. फेफड़ों को श्लेष्मा (म्यूकस) द्वारा संरक्षित किया जाता है। जब सामान्य फेफड़े के ऊतक और एक संस्करण जहां कोशिकाएं श्लेष्म (म्यूकस)  नहीं बना सकती थीं, उन्हें रोगजनक बैक्टीरिया एस्चेरिचिया कोलाई के साथ डाला गया था, प्रत्येक कल्चर में लगभग आधी कोशिकाएं मर गईं। लेकिन जब शोधकर्ताओं ने कल्चर में एक फेज जोड़ा, तो श्लेष्म (म्यूकस) बनाने वाली कोशिकाओं में जीवित रहने की दर में सुधार हुआ.
  14. वायरस ने पौधों को कठोर वातावरण में भी जीवित रहने में मदद की है। उदाहरण के लिए, ऐसा लगता है कि गर्म जल स्त्रोतों के आस-पास की गर्म मिट्टी में उगने वाले पौधों का कवक और एक वायरस के साथ सहजीवी संबंध होता है जो उन्हें उच्च तापमान पर जीवित रहने में मदद करता है।
  15. वायरस पौधों को कैसे लाभान्वित कर सकता है इसका एक और उदाहरण तिपतिया घास (क्लोवर घास) में देखा गया है। जहां एक विशिष्ट वायरस नाइट्रोजन की पर्याप्त उपलब्धता होने की दशा में नाइट्रोजन-फिक्सिंग नोड्यूल की दर को घटा सकता है। इससे पौधों की ऊर्जा बचती है।
SOURCE -WIKIPEDIA ,DOWN TO EARTH

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