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भारत के संसद में राज्य सभा की भूमिका


भारत के संसद में राज्यसभा की भूमिका

प्रश्न- भारतीय लोकतंत्र की संघीय व्यवस्था में राज्यसभा की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। 

 उत्तर -लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में दो सदनों का होना अहम है एक सदन लोकप्रिय इच्छा का प्रतीक (लोकसभा) होता है वहीं दूसरा सदन किसी तरह की भीड़तंत्र वाली मानसिकता को रोकने (राज्यसभा) का काम करता है। राज्यसभा या राज्यपरिषद (Council of States) भारतीय संसद का दूसरा सदन है, जिसकी स्थापना मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार, 1919 के आधार पर की गई


राज्यसभा की सरंचना 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, संघ के लिये एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी। भारतीय संविधान, लोकसभा और राज्यसभा को कुछ अपवादों को छोड़कर कानून निर्माण की शक्तियों में समान अधिकार देता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-80, राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्रों से मनोनीत किया जाता है। यह एक स्थायी सदन है अर्थात् राज्यसभा का विघटन कभी नहीं होता है। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। जबकि राज्यसभा के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव हर दूसरे वर्ष में किया जाता है।

राज्यसभा के पक्ष में तर्क


  1.  यह सदन राज्यों के पक्ष को मज़बूती से रखेगा। यदि लोकसभा द्वारा किसी विधेयक को जल्दबाज़ी में पारित किया गया है तो राज्यसभा उस पर व्यापक चर्चा करेगा।
  2. लोकसभा के निर्णयों की समीक्षा करने और सत्तापक्ष के निरंकुशतापूर्ण निर्णयों पर अंकुश लगाने में सहायता करता है.
  3. उच्च सदन शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों को एक मंच प्रदान करता है.इससे किसी विधयेक के निर्माण में महत्वपूर्ण विशेषज्ञ सुझाव प्राप्त होता है.
  4.  यह भारतीय संसदीय प्रणाली में  नियंत्रण और संतुलन (Check and Balance) स्थापित करता है.

राज्यसभा के विपक्ष में तर्क

1 इनके सदस्यों का चुनाव जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता। 
2 यह कई बार जानबूझकर लोकसभा में पारित आवश्यक विधेयक को पारित करने में विलम्ब करता है। 
3 इसमें ऐसे लोगो को प्रतिनिधित्व हो जाता है जो आम चुनाव में जीत नहीं पाते है.
4 आजकल इस सदन में कई लोग धन तथा अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इसके सदस्य बन जाते है। 
5 विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति में सत्तापक्ष के लोगो को प्राथमिकता दी जाती है। 
विशेषज्ञ सदस्य सदन की कार्यवाही में भाग नहीं लेते।

राज्यसभा की शक्तियाँ एवं कार्य

  1. गैर-वित्तीय विधेयकों तथा संविधान संशोधन विधेयकों के संदर्भ में राज्य सभा की शक्तियाँ लोकसभा की शक्तियों के बराबर है।
  2. धन विधेयक के मामले में राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में सीमित शक्ति प्राप्त है।
  3. अनुच्छेद 249 के अंतर्गत राज्य सूची में शामिल किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती है तथा अनुच्छेद 312 के अंतर्गत नई अखिल भारतीय सेवा स्थापित कर सकती है।
  4. आपातकाल की अवधि यदि एक माह से अधिक है और उस समय लोकसभा विघटित हो तो राज्यसभा का अनुमोदन कराया जाना ज़रूरी होता है।
  5. राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल का हिस्सा होते हैं।
  6. उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही लाया जाता है। 
  7. राष्ट्रपति के महाभियोग तथा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों को पद से हटाने में अपनी भूमिका निभाते हैं।

आगे की राह

राज्य सभा को समयानुकूल बनाने के लिए आवश्यक है की इसमें सदस्यों का निर्वाचन एवं मनोनयन में और अधिक पारदर्शिता लाया जाए एवं प्रत्येक राज्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जाए। मनोनीत सदस्यों को भी विधेयक पर चर्चा के दौरान मत देने का अधिकार दिया जाए।
स्रोत - दृष्टि आईएएस 
 भारतीय राजव्यस्था एम .लक्ष्मीकांत , भारत का संविधान ,ब्रज किशोर शर्मा 




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