संविधान सभा का गठन
किसी भी देश के संचालन के लिए कुछ नियम कानूनों की आवश्यकता होती है, जिसे उस देश का संविधान कहते हैं। इस संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा जैसे संस्था की स्थापना अनिवार्य है। अर्थात संविधान सभा एक ऐसा निकाय है, जो संविधान निर्माण का कार्य करती है। भारत के संविधान निर्माण के लिए भी ऐसी ही एक सभा का गठन किया गया था।
जिसके विषय में निम्न बिन्दुओ के अंतर्गत चर्चा करेंगे -
जिसके विषय में निम्न बिन्दुओ के अंतर्गत चर्चा करेंगे -
- संविधान सभा का गठन
- संविधान सभा की कार्यप्रणाली
- उद्देश्य प्रस्ताव
- संविधान सभा का महत्व
- संविधान सभा की समितियां
- संविधान सभा की आलोचना
- समीक्षात्मक विश्लेषण
संविधान सभा का गठन
संविधान सभा के गठन की अधिकारिक मांग 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा की गई। इसके अलावा भारत में संविधान सभा के गठन का सर्वप्रथम विचार वामपंथी आंदोलन के नेता एम.एन. राय (1934) ने की थी। संविधान सभा के गठन की शुरुआत 1938 में वयस्क मताधिकार द्वारा किए जाने की घोषणा पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई इसी क्रम में 8 अगस्त 1940 में वायसराय लिनलिथगो ने घोषणा द्वारा भारतीय संविधान निर्माण हेतु एक प्रतिनिधित्व पूर्ण निकाय का गठन करने का प्रस्ताव रखा। जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। अगस्त प्रस्ताव के माध्यम से प्रथम बार भारतीयों द्वारा संविधान निर्माण के तर्क को मान्यता दी गई। इसके बाद मार्च 1942 में भारतीय राजनीतिक गतिरोध को दूर करने तथा द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीयों के सहयोग प्राप्ति के उद्देश्य से लेबर नेता स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन लाया गया, जिसने पुनः युद्ध पश्चात संविधान निर्माण हेतु संविधान निर्मात्री परिषद का गठन करने के प्रावधान को शामिल किया गया। जिसमें यह भी स्पष्ट किया गया, कि उक्त परिषद के कुछ सदस्य प्रांतीय विधायकों द्वारा निर्वाचित तथा कुछ रियासतों के राजाओं द्वारा मनोनीत किए जाएंगे। लेकिन इस प्रस्ताव पर मुस्लिम लीग ने स्वीकृति प्रदान नहीं की और मांग की भारत को दो स्वायत्त भागों में विभाजित कर पृथक-पृथक संविधान सभा का गठन किया जाए। अंततः मार्च 1946 में लार्ड पैथिक लोरेंस, स्टेफोर्ड क्रिप्स, ए.वी. एलेग्जेंडर की अगुवाई में कैबिनेट मिशन लाया गया। जिसमें स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान मांग को नकार दिया और एक संविधान सभा गठित किए जाने का प्रावधान किया गया। जिसमें सदस्य देसी रियासतों और प्रांतीय विधान परिषदों से आने थे।
इन सुझावों के आधार पर 9 नवंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। जिसमें कुल सदस्यों की संख्या 389 थी, जिसमें से ब्रिटिश भारत से 296 तथा देशी रियासतों से 93 सदस्य थे, इसके अंतर्गत प्रांतों का सामूहिक कर प्रांतों व रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुसार सीटें आवंटित की गई।
संविधान सभा की कार्यप्रणाली
9 नवंबर 1946 को गठित संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को आयोजित की गई। जिसके अंतरिम अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा चुने गए। जिनके स्थान पर बाद में 11 दिसंबर 1946 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्थाई तौर पर अध्यक्ष निर्वाचित किया गया और एच. सी. मुखर्जी तथा वी. टी.कृष्णामाचारी को सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया।
उद्देश्य प्रस्ताव
13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव के रूप में संविधान निर्माण करने हेतु संवैधानिक संरचना का ढांचा और मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान किया गया। और इसने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का रूप ले लिया। जिसे सर्वसम्मति से 22 जनवरी 1946 को स्वीकार कर लिया गया। इसमें कहा गया, कि-
- सर्वप्रथम भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य के रूप में घोषित कर, ब्रिटिश भारत में शामिल सभी क्षेत्र, भारतीय राज्य में शामिल सभी क्षेत्र एवं भारत में शामिल होने की इच्छा रखने वाले भारत से बाहर के क्षेत्र, भारतीय संघ का हिस्सा होगी।
- इनकी सीमाओं का निर्धारण संविधान सभा द्वारा किया जाएगा तथा नियमों के अनुसार उनकी अवशिष्ट शक्तियां उनमें निहित होंगी।
- संप्रभु स्वतंत्र भारत की सभी शक्तियां एवं प्राधिकार का स्त्रोत भारत की जनता होगी।
- भारत के सभी लोगों के लिए न्याय, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता एवं सुरक्षा अवसर की समता, विधि के समक्ष समता, विचार एवं अभिव्यक्ति, विश्वास, भ्रमण, संगठन बनाने की स्वतंत्रता तथा लोक नैतिकता की स्थापना सुनिश्चित की जाएगी।
- अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों तथा जनजातीय क्षेत्रों के लोगों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- गणराज्य के क्षेत्र की अखंडता और भूमि, समुद्र और वायु क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करेगा।
- विश्व शांति एवं मानव कल्याण को बढ़ावा देगा।
संविधान सभा का महत्व
संविधान सभा ने भारत के सर्वोच्च कानून (सविधान) निर्माण के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण कार्य कर अपने महत्व को बढ़ाया। संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया। 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रीय गान को मान्यता प्रदान किया गया तथा इसी दिन राष्ट्रीय गीत को भी अपनाया गया । इसी तरह संविधान सभा ने मई 1949 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को स्वीकार कर मंजूरी दी थी।
संविधान सभा की समितियां
संविधान सभा ने संविधान के निर्माण से संबंधित विभिन्न कार्यों के लिए कई समितियों का गठन किया। जिसमें से 8 समितियां प्रमुख थी।
यह समितियां एवं उनके अध्यक्ष निम्न प्रकार हैं-
1. संघीय संविधान समिति - जवाहरलाल नेहरू
2. प्रांतीय संविधान समिति - सरदार पटेल
3. संघ शक्ति समिति - जवाहरलाल नेहरू
4. प्रारूप समिति - डॉ बी. आर. अंबेडकर
5. प्रक्रिया समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
6. राज्य समझौता समिति - जवाहरलाल नेहरू
7. संचालन समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
8. परामर्शदाता समिति - सरदार पटेल
आलोचना
संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदाताओं के अभाव में, अंशतः निर्वाचित व अंशतः नामांकित किया गया था जिसने संविधान सभा की लोकप्रियता को कम किया। तथा संविधान सभा का ढांचा को संप्रभु नहीं माना गया, क्योंकि इसका निर्माण भारत के लोगों द्वारा नहीं किया गया था यह ब्रिटिश शासकों के प्रस्तावों द्वारा बनाया गया था तथा इसकी संरचना का निर्धारण भी उन्हीं के द्वारा किया गया था। संविधान सभा में कांग्रेस के सभी लोकप्रिय नेताओं की उपस्थिति ने कांग्रेस का दबदबा स्थापित किया, जिसके कारण आलोचकों द्वारा संविधान सभा में कांग्रेस का बोलबाला कहकर आलोचना की गई। साथ ही संविधान सभा में वकीलों के प्रभुत्व की वजह से यह काफी भारी और बोझिल बन गया था, संविधान सभा द्वारा निर्मित भारतीय संविधान की भाषा कठिन व आम आदमी की समझ में ना आ पाने के कारण संविधान सभा को वकीलों का स्वर्ग कहकर आलोचना की गई।
समीक्षात्मक विश्लेषण
अनेक आलोचनाओं के बावजूद संविधान सभा का अपना एक विशेष स्थान है। स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा पूर्णता संप्रभु निकाय बन गया। 2 साल, 11 माह, 18 दिनों में संविधान सभा ने कुल 11 बैठकों के पश्चात तथा संविधान निर्माताओं ने लगभग 60 देशों के संविधानो का अवलोकन करने के बाद भारतीय संविधान का निर्माण किया और 26 जनवरी 1950 को लागू की गई तथा 1951-52 में हुए प्रथम आम चुनाव के बाद संविधान सभा अंतरिम संसद के रूप में स्थापित हुई और इसके सदस्य संसद के सदस्य बने।
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