Skip to main content

भारत में पंचायती राज


  •  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधीवादी  के  ग्राम स्वराज की अवधारणा को साकार करने के उद्देश्य से पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया और इसके लिए केंद्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय  की स्थापना की गयी |  
  • संविधान सभा में पंचायती राज व्यवस्था का समर्थन प्रसिद्ध गांधीवादी  श्री मन्नारायण अग्रवाल ने किया और पंचायती राज को संविधान के  नीति निदेशक तत्वों के भाग में सम्मिलित किया गया (अनुच्छेद -40 ) | स्वतंत्र भारत में जे. सी. कुमारप्पा ने गांधीवादी आदर्शों के आधार पर गांधीवादी अर्थव्यवस्था  का समर्थन किया | 
  • 2 अक्टूबर ,1952 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पहल पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया | 
  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश के आर्थिक विकास एवं सामाजिक पुनरुध्दार कार्यक्रमों के प्रति जनता में रूचि पैदा करना तथा उसकी भागीदारी को बढ़ाना था , परन्तु इसमें जनता को  अधिकार नहीं दिया गया , जिस कारण यह  कार्यक्रम सरकारी अधिकरियों तक सीमित  रह गया  और असफल हो गया 
बलवंत राय  मेहता समिति (1957 ) 

  • सामुदायिक विकास कार्यक्रम के असफल होने के बाद पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त  बनाने के लिए वर्ष 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोध्दार समिति का गठन किया गया | इस समिति ने अपने  रिपोर्ट में स्थानीय स्वशासन हेतु गाँव से लेकर जिला स्तर तक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया | 
  • 2 अक्तूबर, 1959  ई. को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज वयवस्था की औपचारिक शुरुआत की और इसी दिन इसे  सम्पूर्ण राजस्थान में लागू कर दिया गया 
अशोक मेहता समिति (1977 ) 
  • पंचायती  राज व्यवस्था के मूल्यांकन तथा  इसे और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए , 1977 ई. में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया | 
  • इस समिति में कुल 13 सदस्य थे | 1978 ई. में प्रस्तुत रिपोर्ट में इस समिति ने पंचायती राज व्यवस्था के त्रिस्तरीय ढाँचे के स्थान पर द्विस्तरीय ढाँचे  समर्थन किया | 
  • इस द्विस्तरीय ढाँचे में जिला  स्तर पर जिला परिषद व मंडल स्तर पर मण्डल पंचायत शामिल थी | मण्डल पंचयतों के अंतर्गत 15 से 20 हजार की जनसंख्या और 10 और 15  गाँव सम्मिलित  किए जाने थे | 
  • पंचायतों के चुनाव में सभी स्तरों पर राजनीतिक दलों की भागीदारी को औपचारिक मंजूरी दे दी गई | 
  • पंचायतों के विघटन के बाद चुनाव छ: महीने की अवधि में ही हो जाने चाहिए |  इन  समिति ने पंचायती राज वित्त निगम की स्थापना का भी सुझाव दिया | 
डॉ. एल. एम. सिंघवी समिति (1986 )
  • ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार द्वारा 16 जून ,1986 ई. को  डॉ.लक्ष्मीमल्ल सिंघवी की अध्यक्षता में पंचायती राज प्रणाली के पुनरुत्थान हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया गया 

  1.  स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने ,
  2. पंचायती संस्थाओं के चुनाव गैर -दलीय  आधार पर एवं नियमित रूप से करवाने ,
  3. न्याय पंचायत व ग्राम न्यायालयों की  व्यवस्था करने ,
  4. पंचायतों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने की अनुशंसा की | 
पंचायती राज संस्थाओं को संवैधनिक दर्जा :-
  • वर्ष 1992 में पंचायत संबंधी प्रावधान के लिए प्रधामंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा 73वीं  संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाया गया , जिसे लोकसभा एवं राज्सभा ने क्रमश: 22 एवं 23 दिसम्बर ,1992 को पारित कर दिया | 
पंचायती राज :-
73 वां  संविधान  संशोधन  अधिनियम 1992 
  • 73 वां संविधान संशोधन  अधिनियम , 1992 के पारित होने से देश के संघीय लोकतांत्रिक ढाँचे में एक नये युग का सूत्रपात हुआ और पंचायती राज संस्थाओं को संवैधनिक दर्जा प्राप्त हो गया | 
  • इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग -9 को पुन: स्थापित कर 16 नये अनुच्छेद (अनुच्छेद -243 से अनुच्छेद -243  0 तक ) और 11 वीं अनुसूची जोड़ी गई | इसके द्वारा पंचायतों के गठन , संरचना, निर्वाचन , सदस्यों की  अर्हताएं , पंचायतों की शक्तिओं , प्राधिकार और उत्तरदायित्व आदि के लिए प्रावधान किए गए हैं 
  • ग्यारवीं अनुसूची  में कुल 29 विषयों का उल्लेख है , जिन पर पंचायतों को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई है | 
  • यह संशोधन अधिनियम 24 अप्रैल ,1993  को प्रवर्तित हुआ | इसलिए  प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को  पंचायत  दिवस  के रूप में मनाया जाता है | 
  • इस संशोधन अधिनियम का अभिपालन करने वाला प्रथम राज्य मध्य प्रदेश है | मध्य प्रदेश में सन 1994 में पंचायत चुनाव आयोजित किए गए थे | 
  • इस अधिनियम की मुख्य विशेषता यह है कि , अन्य बातों  के साथ -साथ  इसमें सभी  अनुसूचित जातियों , जनजातियों और महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण और स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने के उपायों सहित राज्य  वित्त आयोग व राज्य निर्वाचन आयोग  का प्रावधान  किया गया है
11 वीं  अनुसूची के विषय (अनुच्छेद  243 छ ) 
  1. कृषि एवं कृषि विस्तार | 
  2. भूमिका विकास, भूमि सुधार , चकबंदी और भूमि संरक्षण | 
  3. लघु सिंचाई , जल प्रबंधन और जल - क्षेत्र का  विकास | 
  4. पशुपालन , डेयरी उद्योग और कुक्कुट पालन | 
  5. मत्स्य उद्योग | 
  6. सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी | 
  7. लघु वन उपज | 
  8. लघु उद्योग जिसके अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी है | 
  9. खादी ग्रामीद्योग और कुटीर उद्योग | 
  10. ग्रामीण आवास | 
  11. पेयजल | 
  12. ईंधन और चारा | 
  13. सड़कें , पुलिया ,पुल , फेरी , जल - मार्ग , अन्य संचार साधन | 
  14. ग्रामीण विद्युकरण  जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण है | 
  15. गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत | 
  16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम | 
  17. शिक्षा, प्राथमिक और  माध्यमिक विद्यालय सहित शिक्षा | 
  18. तकनीक प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा | 
  19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा | 
  20. पुस्तकालय | 
  21. सांस्कृतिक क्रिया - कलाप | 
  22. बाजार और मेले | 
  23. स्वास्थ्य और स्वच्छता , जिसके अंतर्गत अस्पताल , प्राथमिक , स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय भी है | 
  24. परिवार कल्याण | 
  25. महिला एवं  बाल विकास | 
  26. समाज  कल्याण ( विकलांग व मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों सहित ) | 
  27. दुर्बल वर्गो  ( अनुसूचित  जनजातियों ) का कल्याण | 
  28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली | 
  29. सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण |   





    Comments

    Popular posts from this blog

    दंडकारण्य का पठार

    दंडकारण्य का पठार दंडकारण्य का पठार  यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में है। यह छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक दृष्टि से सबसे अधिक समृद्ध प्रदेश है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 39060 वर्ग किलोमीटर है। यह छत्तीसगढ़ के कुल क्षेत्रफल का 28.91 प्रतिशत है। इस पठार  का विस्तार कांकेर ,कोंडागांव ,बस्तर ,बीजापुर ,नारायणपुर ,सुकमा जिला  तथा मोहला-मानपुर तहसील तक है।  इसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों से हुआ है।  बीजापुर तथा सुकमा जिले में बस्तर के मैदान का विस्तार है। यहाँ की सबसे ऊँची चोटी नंदी राज (1210 मीटर ) है जो की बैलाडीला में स्थित है।   अपवाह तंत्र  यह गोदावरी अपवाह तंत्र का हिस्सा है। इसकी सबसे प्रमुख नदी इंद्रावती नदी है। इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। इसका उद्गम मुंगेर पर्वत से होता है। यह भद्राचलम के समीप गोदावरी नदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी नारंगी ,शंखनी -डंकिनी ,मुनगाबहार ,कांगेर आदि है।  वनस्पति  यहाँ उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते है। इस क्षेत्र में साल वृक्षों की बहुलता है इसलिए इसे साल वनो का द्वीप कहा जाता है। यहाँ उच्च स्तर के सैगोन वृक्ष पाए जाते है.कुरसेल घाटी(नारायणपुर ) मे

    INDIAN PHILOSOPHY IN HINDI

    भारतीय दर्शन  (INDIAN PHILOSOPHY)  भा रतीय दर्शन(INDIAN PHILOSOPHY)  दुनिया के अत्यंत प्राचीन दर्शनो में से एक है.इस दर्शन की उत्त्पति के पीछे उस स्तर को प्राप्त करने की आस है  जिस स्तर पर व्यक्ति दुखो से मुक्त होकर अनंत आंनद की प्राप्ति करता है.इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य जीवन से दुखो को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करना है. इस लेख में निम्न बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे - भारतीय दर्शन की उत्पत्ति  भारतीय दर्शन की विशेषताएं  भारतीय दर्शन के प्रकार  भारतीय दर्शन क्या निराशावादी है? निष्कर्ष  भारतीय दर्शन की उत्पत्ति (ORIGIN OF INDIAN PHILOSOPHY) भारतीय दर्शन  की उत्पत्ति वेदो से हुई है.इन वेदो की संख्या 4 है.ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अथर्ववेद। वेद को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। इसलिए वेद को परम सत्य मानकर आस्तिक दर्शन ने प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है अर्थात वेदो की बातो को ही इन दर्शनों के द्वारा सत्य माना जाता है.प्रत्येक वेद के तीन अंग है मंत्र ,ब्राम्हण तथा उपनिषद। संहिंता मंत्रो के संकलन को कहा जाता है। ब्राम्हण में कमर्काण्ड की समीक्षा की गयी है.उपनिषद

    छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य

    छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य इतिहास से प्राप्त साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि मानव जीवन में नृत्य का महत्व आदिकाल से है, जो मात्र मनोरंजन  का साधन ना होकर अंतरिम उल्लास का प्रतीक है । भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट संस्कृति हेतु विख्यात है। छत्तीसगढ़ भारत का अभिन्न अंग होने के साथ ही कलाओ का घर है जिसे विभिन्न कला प्रेमियों ने व्यापक रूप देकर इस धरा को विशिष्ट कलाओं से समृद्ध कर दिया है। इन लोक कलाओ में लोकनृत्य जनमानस के अंतरंग में उत्पन्न होने वाले उल्लास का सूचक है । जब मनुष्य को सुख की प्राप्ति होती है तो उसका अंतर्मन  उस उल्लास से तरंगित  हो उठता है ,और फिर यही उल्लास मानव के विभिन्न अंगों द्वारा संचालित होकर  नृत्य का रूप धारण करता है। किसी क्षेत्र विशेष का लोकनृत्य केवल हर्षोउल्लास  का परिचायक न होकर उस क्षेत्र के परम्परा  व संस्कृति का क्रियात्मक चित्रण होता है, जो स्व्यमेव  एक विशिष्ट परिचय समाहित किए होता  है। छत्तीसगढ़ में नृत्य की विभिन्न विधाएं है जो विभिन्न अवसरों पर किए जाते है। यहां हम निम्न नृत्य विधाओं पर चर्चा करेंगे :-  1. पंथी नृत्य 2. चंदैनी न