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मराठा शक्ति का अभ्युदय

छत्रपति शिवाजी :-
  • मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी का जन्म  20 अप्रैल, 1627 को शिवनेर के दुर्ग में हुआ | उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था | शाहजी भोंसले का अहमदनगर और बीजापुर से राजनितिक संघर्ष में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान था | जीजाबाई देवगिरि के महान जागीरदार यादराव  की पुत्री थी | 
  •  वह स्वभाव से  वे बड़ी ही धार्मिक थी।  अपने पुत्र शिवाजी के चरित्र निर्माण में उनका बड़ा ही महत्वपूर्ण हाथ था। माता  जीजाबाई के अलावा उनके शिक्षक एवं संरक्षक दादाजी कोण्डदेव का भी शिवाजी के जीवन पर महत्वपूर्ण  प्रभाव पड़ा। 
  • वह धार्मिक संत गुरु रामदास और तुकाराम का भी शिवाजी के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा था। 


मराठों के  उदभव के कारण 


  • महाराष्ट्र का अनुकूल भौगोलिक क्षेत्र।
  • धर्म का प्रभाव। 
  • 15 वीं  सदी की रचना ‘गुरु चरित्र ‘ में प्रथम चर्चा। 
  • संत कवि रामदास को इस घटना को राजनैतिक मोड़ देने का श्रेय   
  • ज्ञानदेव ,नामदेव  तुकाराम , एकनाथ आदि संतो द्वारा मराठी राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन। 
  • शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने रचना ‘दश बोध ‘में  मराठी राष्ट्र वाद को उत्प्रेरित किया। 
शिवाजी की विजयें 
  • शिवाजी की विजय और प्रगति 19 वर्ष की अल्पायु से ही आरंभ हो गयी। 1646  में उन्हीने बीजापुर रियासत में फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर तोरण के किले पर अधिकार कर लिया। 
  • बीजापुर से संघर्ष (1659 -1662 ई ,) बीजापुर का मुख्य शत्रु शिवाजी था अतएवं अफजल  खां के नेतृत्व में एक बड़ी सेना का संगठन किया गया।शिवाजी ने बहुत चतुराई से उसकी हत्या कर दी। 
शिवाजी और मुग़ल 
मुग़ल  सम्राट  औंरगजेब   ने 1660 ई , शाइस्ता  खां को दक्षिण का राज्यपाल नियुक्त किया। अप्रैल 1663 ई ,में शिवाजी ने धोखे  से पूना में शाइस्ता खां के निवासी स्थान पर आक्रमण कर दिया। 
सूरत पर आक्रमण (1664 ई )
सन 1664 ई में शिवाजी ने सूरत पर आक्रमण किया और भंयकर लूट -पाट की।  अंग्रेजी और डच कपंनी अपनी रक्षा करते हुए लूट से बच गयी.
  • राजा जयसिंह और शिवाजी :- औंरगजेब ने मार्च ,1665 ई , राजा जयसिंह को शिवजी के साथ संघर्ष के लिए भेजा। जून ,1665 ई , में पुरंदर की संधि अस्तित्व में आई।  इस सन्धि के अनुसार शिवाजी ने 23 किले , मुगलों को देकर मात्र 12 किले अपने अधिकार में रखें। शिवाजी के पुत्र सम्भाजी को मुग़ल दरबार में ‘पांचहजारी मनसबदारी  ‘बनाकर एक जागीर दे दी गई। 
  •  शिवाजी और उनका पुत्र संभाजी मई 1666 ई में आगरा पहुंचे ,किन्तु मुग़ल सम्राट  से जिस स्वागत की उन्हें आशा थी , वह उन्हें नहीं मिला। शिवाजी का स्वागत करने के बजाए उन्हें बंदी बना लिया गया। 
  • सन 1670 ई में शिवाजी ने दूसरी बार सूरत में भारी लूट -पाट की 1674 ई  में शिवाजी ने रायगढ़ में वैदिक रीति से अपना राज्याभिषेक करवाया। 1680 ई में शिवाजी की मृत्यु हो गई। 
शिवाजी की शासन व्यवस्था :-
शिवाजी को सलाह देने के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी।  वयह परिषद “अष्टप्रधान ‘ के नाम से प्रसिद्ध थी। इस परिषद के आठ मंत्री निम्नलिखित  थे। 
  • पेशवा अथवा प्रधानमंत्री :- इसका कार्य सारे राज्य के शासन की देखभाल करना और उन्नति का ध्यान रखना था।  
  • अमात्य अथवा वित्त मंत्री :- इसका कार्य सारे  राज्य,और मुख्य जिलों के आय -व्यय के हिसाब -किताब की पड़ताल करना  और उसे सही करना था। ऐसे मराठा प्रशासन में मजमुआदर कहा जाता है। 
  • मंत्री अथवा वाकयानवीस :-इसका कार्य दरबार की और से राज्य की दैनिक कार्यवाही को लिखना था। इसे ‘वाकयानवीस ‘नहीं कहा जाता था।  
  • सुमंत  या दबीर :-इसे विदेश मंत्री भी कहा जाता था इसका  कार्य विदेशी राज्य के विषय में तथा युद्व और शांति से संबंधित  मामलों में राजा को सलाह देना था।  
  • सचिव अथवा  सुर -नवीस :- वाकयानवीस इसका कार्य राजा के पत्राचार  के कार्य को देखना था . न्यायाधीश :इसका नागरिक 

  • और सैनिक मामलों के संबंध में न्याय  करना था
  • पंडित राव :-  इसे धर्माधिकारी  के नाम से संबोधित किया जाता था। इसका  कार्य धर्मिक संस्कारों की तिथि नियत करना , अफवाह फैलाने  वाले को दंड देना और ब्राह्मणों में दान का वितरण करना था।  
  • सेनापति अथवा सरे -नौबत :- इसका  काम सैनिक की भर्ती , सेना का प्रबंध और अनुसान बनाएं रखना था।

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