भारतीय संसद को दो भागों में बांटा जा सकता है क्रमशः लोकसभा तथा राज्यसभा ।राज्यसभा, भारतीय संसद का उच्च सदन है तथा यह मुख्यतः राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं ।वर्तमान में केवल 245 सदस्य हैं। यह एक स्थायी सदन हैं तथा इसमें सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और इनमें से एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष पश्चात सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
राज्यसभा का अस्तित्व 1919 के मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के द्वारा आया था। इसके तहत तत्कालीन राज्यसभा में 60 सदस्य होते थे जिनमें से 34 सदस्यों का निर्वाचन एक छोटे से निर्वाचक मंडल के द्वारा होता था। इस निर्वाचक मंडल में मुख्यतः जमीदारों तथा पूंजी पतियों का प्रभुत्व था। महिलाओं को इस निर्वाचक मंडल में शामिल नहीं किया गया था।
आजादी के पश्चात भी भारतीय संसद के इस द्विसदनीय स्वरूप को बनाए रखा गया है तथा यह व्यवस्था भारतीय संविधान के मूलभूत संरचनाओं में से एक है। परंतु अब राज्यसभा का निर्वाचन राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है।
राज्यसभा का अस्तित्व 1919 के मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के द्वारा आया था। इसके तहत तत्कालीन राज्यसभा में 60 सदस्य होते थे जिनमें से 34 सदस्यों का निर्वाचन एक छोटे से निर्वाचक मंडल के द्वारा होता था। इस निर्वाचक मंडल में मुख्यतः जमीदारों तथा पूंजी पतियों का प्रभुत्व था। महिलाओं को इस निर्वाचक मंडल में शामिल नहीं किया गया था।
आजादी के पश्चात भी भारतीय संसद के इस द्विसदनीय स्वरूप को बनाए रखा गया है तथा यह व्यवस्था भारतीय संविधान के मूलभूत संरचनाओं में से एक है। परंतु अब राज्यसभा का निर्वाचन राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है।
हाल ही में राज्यसभा के ऐतिहासिक 250 वे सत्र की कार्यवाही पूरी हुई तथा इस अवसर पर पुनः राज्यसभा की प्रासंगिकता को लेकर कई प्रश्न उठने लगे हैं।
यह माना जाता है कि राज्यसभा लोकसभा के ऊपर एक तरह का नियंत्रण रखकर जल्दबाजी में या स्वार्थ वस पारित होने वाले विधेयकों पर रोक लगाता है। इसी तरह यह उस समय महत्वपूर्ण हो जाता है जब आपातकालीन या अन्य परिस्थितियां उत्पन्न हो क्योंकि यह एक स्थायी सदन हैं।
राज्यसभा में 12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति के द्वारा कला, साहित्य तथा समाज सेवा से जुड़े लोगों में से किया जाता है जिसकी वजह से यह एक विशेषज्ञ संस्थान का रूप धारण कर लेता है।
राज्यसभा की भूमिका उस समय और अधिक बढ़ जाती है जब यह अनुच्छेद 249 के अंतर्गत राज्य सूची के किसी विषय पर कानून का निर्माण करती है तथा अनुच्छेद 312 के आधार पर अखिल भारतीय सेवा का गठन करती है। यह दोनों अधिकार केवल और केवल राज्यसभा को ही प्राप्त है।
राज्यसभा का आकार लोकसभा की अपेक्षा छोटा होता है। फलत: यहां पर अधिक सारगर्भित चर्चा संभव हो पाती है। इसी तरह राज्यसभा में ऐसे विषय विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है जो प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुने नहीं जा सकते।
परंतु व्यवहार में या देखा गया है कि कई मर्तबा राज्यसभा लोकसभा से पारित किसी विधेयकों को जानबूझकर लंबे समय तक लटका कर रखता है। इसके अलावा इसमें उन लोगों को सांसद बनाए जाने की भी उदाहरण मिलते हैं जो किसी पार्टी विशेष के लिए फंड रेसर या किसी और तरह से महत्वपूर्ण होते हैं ।अक्सर इसमें चुनाव में हारे हुए नेताओं को सदस्य के रूप में राज्य विधानसभा के सदस्यों के द्वारा चुना जाता है एवं ऐसे सदस्य भी चुनकर आ जाते हैं जो संबंधित राज्यों के नागरिक नहीं होते।
अतः यह जरूरी है कि इसकी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए राज्यसभा में ऐसे सदस्यों को सदस्यता प्रदान की जाए जो पार्टी हित से ऊपर उठकर संबंधित राज्य के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। इसमें विषय विशेषज्ञ को भी महत्वपूर्ण मामलों पर वोटिंग का अधिकार दिया जाए तथा अंतरिक्ष ,आईटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि विषयों से संबंधित विषय विशेषज्ञों को इसका सदस्य बनाया जाए। अमेरिका के सिनेट की तरह इसमें भी प्रत्येक राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए ताकि बड़े एवं छोटे राज्यों का भेद मिट सके तथा राज्यों से संबंधित किसी भी मामलों में निष्पक्ष रुप से वाद विवाद या विमर्श हो सके।
उपरोक्त उपायों को लागू करने के पश्चात ही राज्यसभा अपनी प्रासंगिकता को बनाए रख सकेगा।
Comments
Post a Comment