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मानवाधिकार तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

किसी मानव को मानव होने के नाते जो अधिकार प्राप्त होते हैं उसे ही मानव अधिकार कहते हैं तथा अधिकार सामाजिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं जिनके बिना ना तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और नहीं समाज के लिए उपयोगी कार्य कर सकता है। अधिकारों के बिना मानव जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती,राज्य का सर्वोत्तम लक्ष्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, राज्य के द्वारा व्यक्ति को कतिपय सुविधाएं प्रदान की जाती है और राज्य के द्वारा व्यक्ति को प्रदान की जाने वाली इन बाहरी सुविधाओ नाम ही अधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकार आयोग के  द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा तैयार किया गया। इस घोषणा पत्र में मानव के अधिकार को नागरिक, राजनीतिक अधिकार के साथ साथ सामाजिक-आर्थिक अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है।
इस तरह मानव अधिकार के अंतर्गत किसी भी तरह के भेदभाव समाप्त करने के साथ साथ मनुष्य के सामाजिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को भी शामिल करके सभी मानुषों को समान अवसर उपलब्ध कराने की वकालत की गई है।
भारत में मानवाधिकार
भारत में मानव अधिकार के देखरेख के लिए  1993 में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग मानव अधिकार के संबंध में देश की सर्वोच्च संस्था है उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश इसके अध्यक्ष होते हैं यह राष्ट्रीय मानव अधिकारों के वैश्विक  गठबंधन का हिस्सा है साथ ही राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के एशिया पेसिफिक फोरम का संस्थापक सदस्य भी है।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 12(ज)के तहत यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार साक्षरता का प्रसार विभिन्न प्रकाशनों, मीडिया सेमिनारो तथा अन्य उपलब्ध साधनों के द्वारा करने का प्रयास करता है ताकि जनता के मध्य मानव अधिकार को समझ बढ़े। 
मानव अधिकार आयोग(NHRC) की सरंचना
आयोग में सात सदस्य होते है।भारत के पूूर्व मुख्य न्यायाधीश इसके अध्यक्ष होते है।इसके सदस्य उच्चतम  न्यायालय के जज, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, मानवाधिकार का ज्ञान रखने वाले तीन अन्य सदस्य जिसमें से एक महिला होती है तथा विभिन्न राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष होते हैं। 
मानव अधिकार आयोग (NHRC)के कार्य
इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबधित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
यह  मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य करता है ।    
 मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कोई मामला यदि NHRC के संज्ञान में आता है या शिकायत के माध्यम से लाया जाता है तो NHRC को उसकी सुनवाई का आधिकार है ।
आयोग प्रकाशनों , मीडिया , सेमिनारों, और अन्य माध्यमों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकारों से जुड़ी जानकारी का प्रचार करता है और लोगों को इन अधिकारों की सुरक्षा प्राप्त उपायो के प्रति भी जागरूक करता है।
आयोग  किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बन्द कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमे सुधार के लिए सुझाव दे सकता है।
आयोग के पास दीवानी अदालत की शक्तियां है और यह अंतरिम राहत भी प्रदान कर सकता है ।
यह राज्य तथा केंद्र सरकारों को मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने की सिफारिश भी कर सकता है ।
इसके पास मुआवजे या हर्जाने के भुगतान की सिफारिश करने का  भी अधिकार है ।
आयोग अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है ।
मानवाधिकार आयोग की सीमाएं
आज भी मानवाधिकार आयोग अपने गठन के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पा रहा है।इसके निम्न कारण है-
इसके पास जांच के लिए कोई तंत्र नहीं है।यह सरकार को केवल सिफारिश ही कर सकता है,धन का अभाव भी कई बार इनके कार्य में बाधा प्रस्तुत करता है।
इन सब समस्याओं को देखते हुए मद्रास हाई कोर्ट में मानव अधिकार आयोग को लेकर एक याचिका दायर की गई है जिसमें यह मांग की गई है की मानव अधिकार आयोग की सिफारिशों को सरकार मानने को बाध्य हो।अगर मद्रास हाई कोर्ट इस बात को मान लेती है तो मानवाधिकार आयोग  वास्तव में अपनी  भूमिका को निभाने में सक्षम होगा। यह भी जरूरी है कि इनके पास अपनी स्वंय की जांच के लिए कोई तंत्र हो ताकि यह किसी भी तरह से अपने कार्य के लिए सरकार के ऊपर निर्भर ना हो।
स्रोत -भारतीय शासन एवं राजनीति बी.एल.फड़िया ,द हिंदू  

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