भारत राज्यों का संघ है इसके तहत केंद्र व राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा चार भागों में किया गया है प्रथम,विधायी दूसरा कार्यपालिका तीसरा वित्तीय तथा चौथा न्यायिक है। वर्तमान में भारत में 29 राज्य तथा 9 संघ शासित प्रदेश हैं।
भारत में शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन प्रकार की सूचियां पाई जाती है- पहला संघ सूची, दूसरा राज्य सूची तथा तीसरा समवर्ती सूची। इन सूचियों पर कानून बनाने का अधिकार क्रमशः केंद्र तथा राज्यों को दिया गया है ।इसी तरह समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को दिया गया है परंतु इन दोनों के मध्य समवर्ती सूची संबंधित किसी विषयों पर विवाद होने पर केंद्र को प्राथमिकता दी जाती है।
भारत में शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन प्रकार की सूचियां पाई जाती है- पहला संघ सूची, दूसरा राज्य सूची तथा तीसरा समवर्ती सूची। इन सूचियों पर कानून बनाने का अधिकार क्रमशः केंद्र तथा राज्यों को दिया गया है ।इसी तरह समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को दिया गया है परंतु इन दोनों के मध्य समवर्ती सूची संबंधित किसी विषयों पर विवाद होने पर केंद्र को प्राथमिकता दी जाती है।
वर्तमान में संघ सूची के तहत 100 विषयों का रखा गया है तथा राज्य सूची के अंतर्गत 66 विषयों को रखा गया है एवं समवर्ती सूची में 52 विषय हैं।
संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र तथा राज्यों के मध्य शक्तियों का बंटवारा होने के बावजूद भी अक्सर केंद्र तथा राज्यों के मध्य टकराव की स्थिति बनी रहती है।
वर्तमान में दोनों के मध्य टकराव की स्थिति नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बनी हुई है ।उल्लेखनीय है कि इस कानून के तहत मुसलमानों को छोड़कर अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता दिया जाने का प्रावधान है जो पाकिस्तान ,अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में निवास करते थे परंतु वे अब भारत में निवास करना चाहते हैं।
इस कानून का भारत के अनेक हिस्सों में विरोध हो रहा है तथा 6 राज्यों ने इस कानून को असंवैधानिक मानते हुए अपने अपने विधानसभा में इस कानून के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया है।
इसी तरह अनुच्छेद 131 के तहत पंजाब तथा छत्तीसगढ़ सरीके राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत की है।
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 131 के तहत राज्य सरकारें केंद्र के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं।
केंद्र और राज्यों के मध्य यह टकराव कोई नया नहीं है अपितु इससे पहले भी विभिन्न मुद्दों को लेकर केंद्र और राज्य के मध्य टकराव की स्थिति निर्मित हो चुकी है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र राज्य टकराव ज्यादातर सरकारों के गठन में राज्यपालों की भूमिका को लेकर ही रहे हैं ।इसकी शुरुआत भी आजादी के बाद पहले चुनावों से ही हो गई थी 1952 में मद्रास राज्य में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट और किसान मजदूर पार्टी के मोर्चे ने बहुमत पा लिया था लेकिन राज्यपाल ने उसके नेता टी प्रकाशम को सरकार बनाने का न्योता देने के बदले सबसे बड़े दल कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बुलाया ।इसी तरह की अन्य घटना 1957 और 1965 में केरल में फिर 1971 में बंगाल में उत्तर प्रदेश और हरियाणा में 1982 में हो चुकी है। इन्हीं विवादों के मद्देनजर 1983 में सरकारिया आयोग का गठन हुआ जिसने केंद्र राज्य संबंधों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में राज्यपाल की नियुक्ति ना केवल राज्य की सहमति के आधार पर किए जाने की अनुशंसा की गती थी अपितु राज्यपाल के कार्यकाल को 5 वर्ष की अवधि तक रखने की बात कही गई थी।
केंद्र व राज्य के संबंधों को सर्व संगत बनाने के लिए अकाली दल का आनंदपुर साहिब प्रस्ताव आया था। इस प्रस्ताव में केंद्र की जिम्मे में रक्षा, विदेश और कुछ एक संघीय मामलों के अलावा सब कुछ राज्यों के हवाले करने की मांग के साथ-साथ राज्यसभा को लोकसभा के मुकाबले ज्यादा अधिकार देने की वकालत की गई थी।
केंद्र तथा राज्यों को सहकारी संघवाद में बदलने के लिए एम.एम पूछी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन भारत सरकार के द्वारा किया गया था।
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